________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SHRUTSAGAR
20
___ July-2016 हृदः - द्रहो जबकि आर्ष प्राकृत में ह्रद के स्थान पर हरद होता है और हरद बनता है। हरए महापुंजरित (नामक धरा में) मलिन – उभय - शुक्ति छुप्त आरब्ध पदातेः मइल – अवह सिप्पि धिक्क पाइक्कं उच्चारणे वैकल्पिक रूप से होता है। कुछ व्याकरण ग्रंथों में उभय के स्थान पर वह न करके उवह कहा गया है जबकि आर्ष प्राकृत में तिर्यक के स्थान पर तिरिया प्रयोग होता है। ___ कत्वः - तुम् अत्तूण तआणाः ८.२.१४६ - संबंधक भूतकृदंत के अर्थ सूचक संस्कृत के प्रत्यय कत्वा के स्थान पर तुम, अ, तूम, ऊण, तुआण, उआण प्रत्ययों का प्रयोग धातु मात्र के साथ होता है जैसे
दृष्टवा – दट्ट, भुक्त – भोत्तु, भ्रन्त्वा - भमिअ, रन्त्वा – रमिअ, गृहित्वा - घेत्तुण, तूण के त का लोप, भित्वा – भोत्तुआण, श्रुत्वा – सोउआण
वंदितु सव्वसिध्धे – वंदित्ता सूत्र की प्रथम गाथा रूप प्राप्त है वंदित्वा इस प्रकार के सिद्ध संस्कृत रूप मे से त्वा के व का लोप करके प्राकृत में वंदिता रूप बन शकता है।
इसी प्रकार कृत्वा रूप के स्थान पर आर्ष प्राकृत में कर्ट रूप प्राप्त होता है, कट्टं रूप के अनुस्वार का लोप करने से कट्ट रूप भी बनता है। ___कृत्वसः हुतं ८.२.१५८ – हेमचन्द्राचार्य के सिध्धहेमशब्दानुशासन के ही ७.२.१०९ सूत्र द्वारा वार अर्थ में विहित किए कृत्वस् प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत में हत्तं प्रयोग होता है- सहस्त्रकृत्वः – सयहुतं ___ आर्ष प्राकृत में तिखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं आदि वाक्यों में हुतं के स्थान पर खुत्तो प्रत्यय प्रयुक्त होता है। कृत्वस् प्रत्यय का प्राकृत उच्चारण मात्र है।
सप्तम्याः द्वितीया ८.३.१३७ - जवल्ले कुछ प्रयोगों में सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति होती है, आर्ष प्राकृत में बडे ही विशिष्ट रूप से प्राप्त होता उदाहरण -
तम्मि कालम्मि, तम्मि समयम्मि – तस्मिन् काले, तस्मिन् समये।
तेणं काले णं ते णं समएणं - तेन कालेन तेन समयेन । इस प्रकार विभाजन किया जाए तो ते काले तथा ते समए इन चारों पदों में सप्तमी ही है, आर्ष के
For Private and Personal Use Only