Book Title: Shrutsagar 2016 07 Volume 03 02
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर 31 आधार से ही इस पद को सप्तमी समझा जा सकता है www.kobatirth.org आर्ष में कुछ स्थानों पर प्रथमा के बदले द्वितीया भी प्रयुक्त मिलती है। चतुर्विंशतिरपि जिनवराः – चउवीसं पि जिणवरा । यहाँ चउवीसं पद द्वितीयांत है पर मूलरूप से चउवीसं पद जिनवरा का विशेषण है इस कारण से उसे प्रथमांत ही समझना चाहिए । सी ही हीअ भूतार्थस्य ८.३.१६३ संस्कृत भाषा में तीनों काल और तीनों वचन के आधार से भूतकाल के प्रत्यय लगते हैं किन्तु प्राकृत में तीनों काल तीनों वचन के लिए सी ही हीअ प्रत्यय लगाए जाते हैं आर्ष प्राकृत में भूतकाल को दर्शाने हेतु अब्बवी प्रत्यय का प्रयोग होता है- जो कि संस्कृत के ह्यस्तन भूतकाल के अन्य पुरुष एकवचन के अब्रीत रूप से सिद्ध होता है। ( जालशिक्षा - गतांथी सागण) सायमर्ध आचमति व विक्रीणते Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संदर्भ १. वैयाकरण सिद्धान्त कौमुदी : गोपालदत्त पांडे, सरभारती प्रकाशन-वाराणसी १९८४ चौखंबा. २. HISTORY OF INDIAN LITERATURE. M Winternitz, Motilalbanarasidas vol १, २, ३, Delhi १९६३, Tr. Subhadra jha ३. प्राकृत व्याकरणम् भाग १- २, प्यारचंदजी महाराज, आगम, अहिंसाएवं प्राकृत संस्थान उदयपुर २००६ धर्ध उद्घटयति जुलाई-२०१६ ls उत्तिष्ठति प२वा२र्ध प्रपारयति धूप धूपायति भ२६ मृद्राति For Private and Personal Use Only क्षिर क्षरति भलर्ध मलेत(?) २६ अड्डति छूट छुट भर्ध दम्नोति स शक्नोति पल्लास पर्यार्द्रयति छूंट स्फुटयति -समता

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