Book Title: Shrutsagar 2016 07 Volume 03 02
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर जुलाई-२०१६ क्ष्मा - छमा, श्लाघा – सलाहा, रत्नम् – रयणं । आर्ष प्राकृत में इन शब्दों के अलावा भी शब्द हैं जिनमें अ का आगम होता है सूक्ष्म – सूक्षमम्, सुहमं। हूँ श्री ह्र कृत्न क्रिया द्रिष्टयासु इत् ८.२.१०४ – ह्र में ह से पूर्व इ होता है। ई - अर्हन – रिहा, गर्हा – गरिहा, बर्ह – बरिहोः। श्री के स्थान पर सिरि, ह्री के स्थान पर ह्री के स्थान पर हीरी ह्रीतः के स्थान पर हिरीओ कृत्स्न के स्थान पर कसिणो, क्रिया - किरिया होता है। आर्ष प्राकृत में श्री ह्री आदि शब्दों का प्रयोग जिस प्रकार यहाँ बताया गया है उसी प्रकार से होता है किन्तु आर्ष प्राकृत में क्रिया के स्थान पर किया उच्चारण भी होता है। हतं ज्ञानं क्रियाहीनम्- हयं नाणं कियाहीणं । आवश्यक नियुक्ति गाथा १०१, विशेषावश्यक भाष्य गाथा ११५६ दृष्ट्या – दिद्विआ। स्वप्ने नात् ८.२.१०८ – स्वप्न शब्द में न पूर्व इ का गम होता है यह प्राकृत का निय है और आर्ष प्राकृत में स्वप्न के स्थान पर सुविणो या सुमिणो शब्द का प्रयोग भी मिलता है। ___ तन्वीतुल्येषु ८.२.११३ – गुणवाचक उकारांत शब्द को नारी जाति के लिए ई प्रत्यय लगता है (२.४.३५) इसलिए प्राकृत भाषा में भी तनु – तन्वी, लघु –लघ्वी, गुर्वी –गुरु होता है। इन शब्दों में संयुक्त व्यंजन में उ की प्राप्ति होती है। इसलिए – न्, घ्, र्, ह्, द् आदि व्यंजनों की पूर्व में उ प्राप्त होता है और इन शब्द का तणुवी आदि रूप बनता है। इसी प्रकार आर्ष प्राकृत में भी सूक्ष्म शब्द में भी उ का आगम होता है। सूक्ष्मम् – सुहुमं। हदे ह - दो ८.२.१२०- सामान्य प्राकृत में ह्र और द् का स्थान परिवर्तत करने का नियम है। जैसे For Private and Personal Use Only

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