Book Title: Shrutsagar 2016 07 Volume 03 02
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SHRUTSAGAR
July-2016 चंद्रगच्छसिणगारणहार, जयवंता जगि करइं विहार । पाटण पाखलि नयर असेस, गुरे प्रतिबोध्या सघला देस ॥१९॥ मालव मरहट वाणारसी, गया पार हिव कहीइ किसी। पचूआरा परहासा सवे, जिणसासणि कहिइं गुरु चक्कवइ ॥२०॥ वहइ निरंतर मस्तकि आण, आप पखी पर पक्षी(खी) सुजाण । समकित-रयण हीयइ नितु धरइ, सोमकिरण सघले विस्तरई ॥२१॥ वंद्या गोअम जंबूसामि, वंद्या थुलभद्र वयरसामि। वंद्या गणहर कालिकसूरि, जेहिं वि(वं)द्या सिरि सोमसुंदरसूरि ॥२२॥ अनंत चउवीसी चउमुख तपउ, तां सिरि सोमसुंदरसूरि जपउ। गुरु उपदेसिइं धरणविहार, पुण्य तणउ नवि लाभइ पार ॥२३॥ पंच आचारियपद गुरि किया, पंच य उवज्झायपद थापियां।
अजितसामि तारणगढि धुरे, लक्ष बिंब गुरु प्रतिष्ठा करी ॥२४॥ तुम्ह वारइ जिणसासणि शांति, तुम्ह नामइं सवि भाजइं भ्रांति । रोग सोग तुम्ह नामिइं टलई, भूत प्रेत वितर नवि छलई ।।२५।। तुम्ह वारइ हुआ जीर्ण-उद्धार, मुनिवर-दीक्षा संख न पार। श्रावक लाख कोडी सांभली, संख्या जाणइ को केवली ॥२६॥ नवसठि वरस कीउंगरि राज, जिणसासणि किआं मोटां काज। निव्वणवइ हूउं निरवाण, महाविदेहि पुहता सुजाण ॥२७॥ जई बईठा सीमंधर कन्हइ, अंबाई कहिउं अम्ह गमइ। वरस सातमइ दीक्षा वली, तउ पाछइ होसिइ केवलि ॥२८॥ संवत पनर बिडोतरमाहि, मेहइं हर्षि कीउ सज्झाय। भणइ गुणइ जे नितु संभलइ, मनवंछित-रिधि तिहि घरि मिलइ ॥२९॥ ॥ इति श्रीतपागच्छाधिराज परमगुरु श्रीश्रीश्री सोमसुंदरसूरि स्वाध्यायः॥
गाथा २८ जोधपुरनी प्रतमा नथी, कोबानी प्रतमा छे.
गाथार्थ- सोमसुंदरसूरि गणधार काळधर्म पामी महाविदेह क्षेत्रमा श्रीसीमंधरस्वामी पासे अवतर्या छे. त्यां सातमे वर्षे दीक्षा लइ पछी केवळज्ञान पामी मोक्षमां पधारशे एवी वात अंबिकादेवीए करी ए (परंपराथी जाणेली) वात अमने अहीं सूझे छे.
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36