Book Title: Shrutsagar 2015 04 Volume 01 11
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
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श्रीविजयप्रभसूरिसरु, पूरो संघ जगीस हो लाल । श्रीनयविजयबुधरायनो, सीस कहे आसीस हो लाल ॥९॥
(२) विजयानंदसूरि स्वाध्याय
सरसति मति द्यो अति सारि (री), गाउं विजयत (ति) लक पट्टधारि(री) । जस गुण गाय सू(सु)र-नारि लला हो, श्रीविजयाणंदरिवंदि ||१|| तपगच्छनो सिंणगार लला हो, मुख देखी मन आनंदिई ।
धन धन सां (शणगारदे मात, धन धन सा श्रीवंत तात । वळ धन पुरवाडनि (नी) न्यात लला हो, श्रीविजयाणंदसूरि वंदिइ ॥२॥
थया कमलविजय अणगार, विद्याइ वि (व) इ (य) र कुमार । पाले पंच महाव्रत सार लला हो, श्रीविजयानंदसूरि वंदिइ ॥४॥
मात तात भुआ सेंजबाइ, वैरागें चारेइ भाइ ।
हीरे द(दीक्षा दिधी उमाहि लला हो, श्रीविजयानंदसूरि वंदिइ ॥३॥
श्रीविजयत (ति) लकसूरि मन आणि, पद थापें बहु गुण जाणि । बोलें सासनादेवी वाणी लला हो, श्रीविजयाणंदसूरि वंदिइ . ॥५॥
अप्रैल - २०१५
पद मो(महो) छव लाहो लीध्यो, संघवी मेहाजल कीध्यो । पीरोजी घर-घर दि(दी )ध लला हो, श्रीविजयाणंदसूरि वंदिइ. ॥६॥ रुप देखीनें रतिपति लाजें, जस किरति पढो (ट) हो वाजें । तपगच्छ ठुकराइ छाजें लला हो, श्रीविजयानंदसूरि वंदिइ ॥७॥
गछपति वेग...
कुमतिनो संग निवारें, वि(वी) र हीरना वचनां संभारे । इम नर-नारिनें तारें लला हो, श्रीविजयाणंदसूरि वंदिइ ॥8॥
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पहुचाडो संघ जगीस, गरु प्रतयो कोड वरीस ।
दिं (दीं) रि(ऋद्धिविजय आसि (शि) स लला हो, श्रीविजयाणंदसूरि वंदिइ ॥9॥
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