Book Title: Shrutsagar 2015 04 Volume 01 11
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 30 APRIL 2015 बी तरफ गधेडा, शंडे अने घोडाए शुभकारी स्पष्ट साद विस्तार्यो, डाबी अने जणी तरफ दुर्गा अने गणेशे कल्याणकारी अवाज कर्या. निर्धूम अनि अने हाथी सामेदेखाया. संघ प्रयाण करी वीरमगाम पहोंच्यो. त्यांथी आगळ जतां श्रीमलिको अने राणाओए गुणराज भेट आपी. पछी संघ धंधुका अने वलभीपुर थई पालीताणे आव्यो. गुणराज सकळ संघ सहित 'शत्रुंजय' गिरि उपर चड्यो. एणे कपर्दी यक्षने अने आदिनाथने प्रणाम कर्या. पछी पोतानी प्रतिज्ञा पूर्ण थतां गुणराज मधुमती (महुवा) आव्यो. ए समये एनी विज्ञप्तिथी गच्छपति जिनसुंदर वाचकने 'सूरि' पदवी आपी अने उत्सव ए गुणराजे कर्यो. पछी ए क्रमे क्रमे देवपत्तन, मंगलपुर (मांगरोळ?) अने जीर्णदुर्ग (जूनागढ )मां आव्यो. 'रैवत' गिरिना राजाने रंजित करी गुणराजे ए गिरिनी यात्रा करी अने काळांतरे ए कर्णावती आव्यो. आ प्रमाणेनी हकीकत वर्णवी आ सर्ग पूरी करायो छे. नवमा सर्गमां विशालराजने 'वाचक' पद, बिंबनी प्रतिष्ठा, जिनकीर्तिने 'सूर' पदवी, पंचमीनं उद्यापन, राणपुरमां भव्य जिनमंदिरनुं निर्माण, अमदावादना समरसिंहनी तीर्थयात्रा, पचवारकमां संघवी महुणसिंहे बंधावेल जिनमंदिर अने वि. सं. १४९९मां सोमसुंदरसूरिनो स्वर्गवास, ए बाबतो वर्णवाई छे. दसमा सर्गमां सोमसुंदरसूरिनी पाटे थयेला केटलाक मुनिवरोनी संक्षेपमां प्रशंसापूर्वक नोंध लेवाई छे. सौथी प्रथम मुनिसुंदरसूरि विषे उल्लेख छे. 'सूरि - मन्त्र' नुं स्मरण करवानी एमनी शक्ति वर्णवी एमने हाथे 'श्रीरोहिणी' नगरमां उपद्रव दूर थतां त्यांना राजाए शिकारनो निषेध स्वीकार्यो अने अमारि प्रवर्तावी, ए वात अहीं कहेवाई छे. वळी देवकुलपाटकमां 'शांति - स्तवन' थी मारिनो उपद्रव ए सूरिए दूर कर्यो हतो. एम पण अहीं कह्युं छे. एमना पछी जयचन्द्रसूरि विषे एवो उल्लेख छे के एमने 'कृष्ण वाग्देवता 'नुं बिरुद हतुं अने एमणे काव्यप्रकाश, संमति ( प्रकरण) वगेरे ग्रंथो घणा शिष्योने भणाव्या हता. त्यार बाद भुवनसुंदरसूरि, जिनसुंदरसूरि अने जिनकीर्तिसूरि विषे निर्देश छे. रत्नशेखरसूरिना संबंधमां एम कह्युं छे के एमणे दक्षिण दिशाना गर्विष्ठ वादीओने जीत्या हता. संघपति लक्षे जेमने सूरिपद अपाव्यं हतुं, एवा गुणोदयनंदिसूरि नो उल्लेख करी फरीथी रत्नशेखरसूरिनुं गुणोत्कीर्तन करायुं छे. १. अहीं गुणोदयनंदिसूरिना बदले उदयनंदिसूरि नाम समजवु. For Private and Personal Use Only

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