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APRIL-2015 भी दी हुई रहती है, उससे लपेटकर गोटकों को सुरक्षित बांधा जा सकता है.
पढने हेतु गोटके दो प्रकार से खुलते हैं- १) दाये-बाये खुलने वाले गुटके. २) ऊपर-नीचे खुलने वाले गुटके. गुटकों में खडी व आडि दो प्रकार की लंबाई में लेखन होता है. ____ हस्तप्रतों में कच्छपी, मुष्टि जैसे प्रकार क्यों है, उसके पीछे भी कुछेक कारण हैं, जैसे कि प्रतों के लिए ताडपत्र, कागज का कटिंग किया जाता था, उसमें से जो टुकडे निकलते थे, उसे वेस्ट न मानकर उसका भी उपयोग कर लिया जाता था. उपयोग में लेने के लिए उसे जो संभव हो, अच्छा लगे वैसा आकार देकर उपयोग में ले लिया जाता था. क्योंकि उस समय ताडपत्र, कागज बहुत ही दुर्लभ थे. जिस आकार में जो टुकडे मिले उसे यथासंभव एक योग्य निश्चित स्वरूप देकर ले लिया जाता था. इस कारण से भी हस्तप्रतों में विविधता नजर आती है.
हस्तप्रतों के उपरोक्त प्रकारों के अलावा वर्तमान में प्राचीन साहित्य के अन्य भी कई प्रकार उपलब्ध हैं. ताम्रपत्र, शिलापट्ट आदि पर भी ग्रंथ लिखे जाते थे. ___ इस लेख में प्रवचन सारोद्धार सिद्धसेनसूरि विरचित तत्त्वज्ञान विलासिनी वृत्ति एवं भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखन कला का आधार लिया गया हैं व सम्राट संप्रति संग्रहालय, कोबा से चित्र दिए गएँ हैं.
(पेज नं. ३२नु अनुसंधान) श्री महुडी तीर्थे दीक्षा प्रसंग :
दि. २५/०४/२०१५ को श्री महुडी (मधुपुरी) जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट-संघ के उपक्रम में श्री महुडी तीर्थ के परम पवित्र प्रांगण में गच्छाधिपति प. पू. आ. भ. श्री मनोहरकीर्तिसागरसूरीश्वरजी म. सा., प. पू. आ. भ. श्री वर्धमानसागरसूरिजीजी म. सा., प. पू. आ. भ. श्री उदयकीर्तिसागरसूरिजी म. सा., प. पू. आ. भ. श्री प्रसन्नकीर्तिसागरसूरिजी म.सा., प. पू. आ. भ. श्री विवेकसागरसूरिजी म. सा., प. पू. आ. भ. श्री अजयसागरसूरिजी म. सा. आदि ६ सूरिवों की एवं तीस से अधिक श्रमण श्रमणी भगवंतो की पुनित निश्रा में खेडा निवासी मुमुक्षु श्री ऋषभकुमार की भागवती दीक्षा का कल्याणकारी प्रसंग सानंद संपन्न हुआ. पुत्र के उत्कृष्ट त्याग को देखकर दीक्षार्थी के धर्मपरिणामी माता-पिता श्री हिरेनभाई एवं श्रीमती जयश्रीबहनने भी चतुर्थव्रत का ग्रहण किया.
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