Book Title: Shrutsagar 2015 04 Volume 01 11
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 23 23 अप्रैल-२०१५ श्रुतसागर की होती है. .. गोटका के लिए एक साधारण व्याख्या करें तो कह सकते हैं कि पुराने जमाने का अधिकांश आडे या क्वचित् खडे लंबे आकार वाला सिलाईयुक्त व वेस्टन युक्त हस्तलिखित ग्रंथ. गोटके मुट्टि में आ जाएँ इतने छोटे से लगाकर बृहद्काय भी होते हैं. अधिकांश गोटकों के ऊपर सुरक्षा हेतु आवरण के रूप में मजबूत सीलाई युक्त पूँढें भी लगे हुए रहते हैं. उन पूँठों के ऊपर भी कपड़ा लगाया हुआ रहता है. वह कपड़ा चिपकाया हुआ या सिलाई किया हुआ भी मिलता हैं. जिस प्रकार व्यवसाय में हिसाबकिताब हेतु खाताबही होती हैं वैसे गोटके होते है. कपड़े लगाकर पूंठों को मजबूत किया जाता है और उन मजबूत पूठों की वजह से गोटके की सुरक्षा व आयु लंबी हो जाती है. कई गोटकों में जहाँ सिलाई की होती है वहाँ (पीठ वाले भाग के) बीच में एक लंबी डोरी For Private and Personal Use Only

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