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APRIL-2015
२. कच्छपी :- वैसे प्रतों या ग्रंथों की जब भी बात आती है तो एक निश्चित आकार-प्रकार के साहित्य की छवि नजर के सामने उपस्थित होती है. उसमें लंबाई वाले या चौड़ाई वाले प्रचलित दो-तीन प्रकारों का ही खयाल आता है. लेकिन हस्तप्रत साहित्य में साधारण प्रकारों के अलावा अन्य भी कई प्रकार होते हैं. उस प्रकार की प्रतें भले मात्रा में कम हों, लेकिन हैं अवश्य. ऐसा ही एक प्रकार है कच्छपी. यह प्रत अपनी दोनों किनारीयों से सीकुडी हुई एवं बीच में से फैली हुई होती है. अर्थात् कछुए की तरह उसका आकार होता है. इसीलिए ही उसका नाम कच्छपी रखा गया है. ३. मुष्टि :
बिलकुल छोटे पन्नों वाली पोथी, जिसे मुट्ठि में रखकर कहीं भी ले जाया सके ऐसी प्रत को मुष्टि कहते हैं. मुट्ठी में रख पाने के कारण मुष्ठि कहा जाता है. मुष्ठि पोथी दो प्रकार की होती है, एक चार अंगुल लंबी व गोल होती है, दूसरी चार अंगुल की चतुरस्त्र होती है. वैसे मुष्ठि का प्रमाण चार अंगुल का ही माना गया है, फिर भी थोडे-बहुत कम-ज्यादा अंतर वाली छोटी पोथी को भी मुष्ठि प्रकार में समाविष्ट किया
सकता है. वह चौरस या लंबचौरस हो तो भी इस में गिना जा सकता है. जाहिर जगह पर सहज उपयोग हेतु व देशांतर साथ ले जाने हेतु उपयोगिता के आधार से
यह बनाया जाता था.
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