Book Title: Shat Pahuda Grantha
Author(s): Jain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
Publisher: Jain Siddhant Pracharak Mandali Devvand

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Page 43
________________ ( ३५ ) ४ चौथा बोध प्राकृतम् । बहुसच्छअच्छजाणे संजमसम्पतसुद्धतवयरणे । बन्दिताआयरिए कसायमल वज्जिदेमुद्दे ॥१॥ सयलजणवोहणत्थं जिणमग्गोजिणवरेहिंजहभणियं । बुच्छामिसमासेणय छक्कायमुहंकरं मुणम् ॥ २ ॥ बहुशास्त्रार्थनायकान् संयमसम्यक्त्वशुद्धतपश्चरणान् । वन्दित्वाऽऽचार्यान् कपायमलवनितान् शुद्धान् ॥ सकलजनबोधनार्थ जिनमार्गे जिनवरैर्यथा मणितम् । वक्ष्यामिसमासन च षटकायसुहंकरं शृणु ॥ अर्थ-अनेक शास्त्री के अर्थों के जानने वाले, संयम और सम्यग दर्शन से शुद्ध हैं तपश्चरण जिनका, कषाय रूपी मल से रहित और शुद्ध ऐसे आचार्य परमेष्ठी की बन्दना ( स्तुति) करके बोध पाहुड़ को संक्षेप से वर्णन करता हूँ जैसा कि षटकाय के जीवों को हितकारी जिनेन्द्रदेव ने जैन शास्त्रों में समस्त जनों के बोध के अर्थ वर्णन किया है, तिस को तुम श्रवण करो। आयदणं चैदिहरं जिणमडिमा दंसणं च जिणविवं । भणियं मुवीयरायं जिणमुद्दाणाणमादच्छं ॥ ३ ॥ अरहतेणसुदिटं देवं तिच्छमिहयअरिहन्तं । पाविज्जगुणविमुद्धा इयणायव्वाजहाकमसो ॥ ४ ॥ आयतनं चैत्यगृहं जिनप्रतिमादर्शनं च जिनबिम्बम् । भणितं सुवीतरागं जिनमुद्रा ज्ञानमत्मस्थम् ।। अर्हतासदृष्टंयोदेवः तीथमिह च अर्हनन्तम् । प्रवज्यागुणविशुद्धा इति ज्ञातव्या यथाक्रमशः ॥ अर्थ-- इस बोध पाहुड़ में इन ११ स्थलों से वर्णन किया जाता है मायतन १ चैत्यग्रह २ जिन प्रतिमा ३ दर्शन ४ उत्तम वीतरागस्वरूप

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