Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 19
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

View full book text
Previous | Next

Page 222
________________ चण्डस्तूर्णं प्रविष्टोऽथ, रमणं च ददर्श सः / असिपुत्रीं समाकृष्य, हन्तुं व्यवसितश्च तम् // 984 // दैन्यं प्राप्तोऽथ रमणो, मुखक्षिप्तदशाङ्गुलिः / अष्टाङ्गपादपतनं, चण्डस्य कृतवान् भिया // 985 // ततश्चण्डो दयोत्पत्त्या, मारयामास नैव तम् / रोषोत्कर्षात् परं तस्य, बोटिता तेन नासिका // 986 // लुप्तौ कर्णौ चक्षुरेकं, कृष्टं विदलिता रदाः / दत्तः पार्ष्णिप्रहारोऽथ, हसितं गणिकाद्वयम् // 987 // कृतस्ताभ्यां हृतस्वान्तश्चण्ड: पेशलभाषितैः / राजलोकैर्हतो निर्यन्, मुक्तश्च रमणोऽसुभिः // 988 // दध्यौ प्रकर्षः कामस्य, भयस्य च विचेष्टितम् / कुट्टिन्याश्चातिगहनं, साक्षात् प्रेक्षणकोपमम् // 989 // विमर्शः प्राह येऽप्यन्ये, भवन्ति गणिकारताः / तेषामीदृशमेव स्यान्नाटकं विस्मयावहम् . // 990 // वेश्याभिर्हतसर्वस्वा, भवन्ति कुलदूषणाः / न च मूढा विरज्यन्ते, शोच्यामपि गता दशाम् // 991 // सर्पिण्य इव विश्वास्या, नान्या अपि हि योषितः / दृग्विषाहिसमानासु, वेश्यासु प्रश्न एव कः // 992 // कुष्टिनोऽपि हि पश्यन्ति, स्मराभान् धनदायिनः / निलाक्षालक्तकप्रायान्, वेश्या मुश्चन्ति निर्धनान् // 993 // प्रकर्षेणोदितं सत्यमेतन्नास्त्यत्र संशयः / ततो निर्वाहितस्ताभ्यां, रात्रिशेषः कृचिद् गृहे // 994 // आलिलिङ्ग रजनीविरहार्ता, द्यां ससंभ्रममथाम्बुजपाणिः / तद्वशेन निपपात मणीनां, हास्यष्टिरिव तारकराजी // 995 // 2013

Loading...

Page Navigation
1 ... 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274