Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 19
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________ शीतं चन्दनवच्छायाऽन्वितं नन्दनवृक्षवत् / / महेश्वरवदुत्सङ्गविलसत्सर्वमङ्गलम् (युग्मम्) // 1260 // इदं पश्यन्ति नाधन्या, निधानमिव भूस्थितम् / . अन्तर्दृष्ट्याऽतिविमलमाकाशस्फटिकोपमम् // 1261 // अत्रस्थानां विवेकाद्रिरेति दृग्गोचरं नृणाम् / . स्थितिरत्रास्य सिद्धाद्रेर्दृष्टौ सिद्धाञ्जनायते // 1262 // अत्र स्थिता जना रम्या:, पुरस्यैवानुभावतः / अतिरम्याः पुनस्ते स्युविवेकशिखरं गताः // 1263 // अत्र स्थितानां लोकानां, रोचते जैनसत्पुरम् / इक्षुयष्टिरिवोष्ट्राणां, नान्येषां भववासिनाम् // 1264 // ऊर्ध्वस्थमपि पश्यन्तस्तन्मोदन्तेऽत्रवासिनः / चकोरा इव चन्द्रस्य, पिबन्तः किरणामृतम् // 1265 // अयं गिरिः पुनर्घोरदुःखनाशकरो नृणाम् / श्रिया गरिष्ठो दृष्टोऽपि, काऽऽरोहस्य तु संकथा // 1266 // अत्र स्थिताः प्रपश्यन्तो, भवचक्रं करस्थितम् / / जनास्ततो विरज्यन्ते, कूटकार्षापणादिव // 1267 // अत्र स्थितानां स्त्रीवर्गः, श्मशानघटिकाकृतिः / . श्मशानधूमसदृशी, भाति तत्प्रेमपद्धतिः // 1268 // नान्यत्र प्रतिबन्धः स्यादस्मिन् दृष्टिपथं गते / भ्रमति भ्रमरोऽन्यत्र, किं दृष्टे मालतीवने // 1269 // स्पृष्ट्वाऽपि दुःखिनो नैनं, भवचक्रगता अपि / भवन्त्यौषधिलिप्ताङ्गा, वह्निपुञ्जस्थिता इव // 1270 // शिखरं च विवेकादेरिदं दोषनिबर्हणम् / .. महामोहादिशत्रूणामुच्चाटनकरं परम् .. // 1271 // 236

Page Navigation
1 ... 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274