Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 19
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

View full book text
Previous | Next

Page 243
________________ // 15 // // 16 // // 17 // % 3D // 20 // अवक्रयाऽऽत्तवेश्मेव, मोक्तव्यमचिरादपि / लालितं पालितं वा पि, विनश्वरमिदं वपुः धीरेण कातरेणाऽपि, मर्तव्यं खलु देहिना / तन्नियेत तथा धीमान्न म्रियेत यथा पुनः अर्हतः शरणं सिद्धान्, शरणं शरणं मुनीन् / .... उदीरितं केवलिभिर्धर्मं शरणमाश्रय जिनधर्मो मम माता, गुरुस्तातोऽथ सोदराः / .. साधवः साधर्मिकांश्च, बन्धवस्त्विति चिन्तय जीवघाता-नृता-दत्त-मैथुना-रम्भवर्जनम् / त्रिविधं त्रिविधेनाऽपि, प्रतिपद्यस्व भावतः अष्टादशानां त्वं पापस्थानकानां प्रतिक्रमम् / कुरुष्वाऽनुसर स्वान्ते, परमेष्ठिनमस्कियाम् ऋषभादींस्तीर्थकरान्नमस्य निखिलानपि / भरतैरावतविदेहाऽर्हतोऽपि नमस्कुरु तीर्थकृद्भयो नमस्कारो, देहभाजां भवच्छिदे / भवति क्रियमाणः सन्, बोधिलाभाय चौच्चकैः सिद्धेभ्यश्च नमस्कारो, भगवद्भ्यो विधीयताम् / . कर्मेधोऽदाहि यैानाग्निना भवसहस्रजम् . आचार्येभ्यः पञ्चविधाचारेभ्यश्च नमस्कुरु / यैर्धायर्ते प्रवचनं, भवच्छेदसदोद्यतैः श्रुतं बिभ्रति ये सर्वं, शिष्येभ्यो व्याहरन्ति च / तेभ्यो नम महात्मभ्य, उपाध्यायेभ्य उच्चकैः शीलव्रतसनाथेभ्यः साधुभ्यश्च नमस्कुरु / . क्षमामण्डलगाः सिद्धिविद्यां संसाधयन्ति ये . // 21 // // 22 // // 23 // // 24 // // 25 // // 26 // 234

Loading...

Page Navigation
1 ... 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274