Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 19
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 265
________________ // 1495 // // 1496 // // 1497 // // 1498 // त्रयस्त्रिंशत्सागरायुस्त्रोटितो वज्रकण्टकैः / / सोढदुःखस्ततो नीतः, पञ्चाक्षपशुपत्तनम् सप्तापि पाटकानेवं, भ्रामितो नरकावनौ / तथाऽहं विकलैकाक्षनृगतिष्वप्यनन्तशः सर्वस्थानेषु हीनाऽभूज्जातिर्मे निन्दितं कुलम् / अलाभमूर्खतादौःस्थ्यतापैश्चाहं कर्थितः अन्यदा भवचक्रेऽहं भवितव्यतया कृतः / मनुष्यो मध्यमगुणस्तुष्टा चेयं ममोपरि / आविर्भाव्य पुनः पुण्योदयमित्रमियं जगौ / गच्छायपुत्रयुक्तस्त्व, वधमानपुरेऽमुना परिविगलितां दृष्ट्वा प्राच्यां गुटी भववासिकामियमथ ददावन्यां धन्याशया मम तादृशः / असुखजलधि तीर्खा यस्याः स्फुयदनुभावतः, कुशलकलिता लभ्या जन्मान्तरे सुयश:श्रियः इति समुदितमानासूनतोन्मादजिह्वाविषयविषविपाकं रौद्रमुच्चैनिशम्य / य इह भवति विज्ञस्तज्जये बद्धयत्नः, .. स्रजमिह सुयशः श्रीस्तस्य बध्नाति कण्ठे // 1499 // // 1500 // // 1501 //

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