Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 19
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ तपनाभिमुखं जग्मुस्ततो मन्त्रिमहत्तमाः / . सन्ति चास्य चरा नैके, विचित्राः सर्वतोमुखाः . // 1471 // वर्णस्वरतिरोधानवेषभाषादिवेदिनः / तेभ्यो ह्येकेन विज्ञातो, वृत्तान्तोऽयमथ स्फुटम् // 1472 // उक्तश्च सार्वभौमाय, मन्त्रिणश्च महत्तमाः / अथागतास्तस्य चक्रुः प्रतिपत्ति गरीयसीम् // 1473 // प्राभृतानि मार्घाणि, ढौकयामासुरादरात् / रिपुदारणवार्ता, च पृष्टाऽऽस्थानस्थचक्रिणा // 1474 // ते प्रोचुर्देवपादानां, प्रसादात् कुशलीतराम् / देवपादान् समानेतुमायाति रिपुदारणः // 1475 // तैरथाबायका मुक्ता, ब्रूत नायामि सर्वथा / शैलराजमृषावादवशेनोक्तं मया तु तान् / // 1476 // आह्वायकोक्तमाकर्ण्य, तत् ते मन्त्रिमहत्तमाः / जाताः सोद्वेगवैलक्ष्याः, परस्परंमुखेक्षिणः // 1477 // विज्ञाय तपनश्चक्री, तदाकूतमदोऽवदत् / धीरा भवत भो लोका, नात्र दोषोऽस्ति कोऽपि वः // 1478 // मोच्यस्त्ववस्तुनिर्बन्धो, न योग्यो रिपुदारणः / राज्यस्य शिक्षयाम्येनं, ज्ञातदुःशीलचेष्टितम् // 1479 // युष्मादृशपदातीनां, नायकोऽयं न शोभते / मरालानामिव ध्वाङ्गो, द्विपानामिव शूकरः // 1480 // मयि सर्वैश्च्युतस्नेहैस्ततो मन्त्रिमहत्तमैः / प्रमाणं देवपादानामाज्ञा न इति भाषितम् // 1481 // चक्रभृन्मान्त्रिकं प्राह, ततो योगेश्वराभिधम् / गत्वा विनाटनीयोऽयं, बहुधा कृतकर्मभुक् // 1482 // 254

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