Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 19
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 257
________________ भास्वत्कान्तिभिरिन्द्रगोपपटलैः क्लृप्ताङ्गरागेव भूव्योमात्रैश्च घनागमेन विततैः कस्तूरिकापङ्किलम् // 1399 // तादृशीं प्रावृषं प्रेक्ष्य, प्रकर्षो मातुलं जगौ / गम्यतामधुना तातसन्निधौ मातुल ! द्रुतम् // 1400 // पन्थानः शीतलीभूता, यतोऽमी गमनोचिताः / भीष्मग्रीष्मातपकृता, गता दुर्गमता पथाम् // 1401 // विमर्शः प्राह मा वादीरिदं यन्नाधुनोचितम् / / गमनं ते हि धन्या ये, न वर्षासु प्रवासिनः // 1402 // वर्षासु गच्छतो मेघस्तडिद्दण्डैनिषेधति / स्खलित्वा पततः पान्थान्, हसन्ति कुटजाः स्फुटम् // 1403 // ततस्तिष्ठाधुनाऽत्रैव, यथेयत्समयं स्थितः / अत्र स्थितस्य ते प्रज्ञापाटवं हि भविष्यति // 1404 // एवमस्त्विति तेनोक्ते, स्थितौ प्रावृषि तौ ततः / तुष्टौ समागतौ गेहे, दत्तास्थाने शुभोदये // 1405 // समीपस्थे च तस्यैव भार्यायुक्ते विचक्षणे / नतिं विधाय तौ तेषां, निविष्टौ शुद्धभूतले // 1406 // आलिलिङ्ग बलाद् बुद्धिविमर्श तत्पतिस्तथा / प्रकर्षोऽपि समालिङ्गय, सर्वैरङ्के निवेशितः // 1407 // आघ्राय मूर्ध्नि कुशलं, पृष्टः सर्वैः समातुलः / स्पष्टं सर्वं यथादृष्टं, तेषां कथयतः स्म तौ // 1408 // इतश्च मद्यमांसाद्यै रसनां लालयन् जडः / त्यक्त्वा लज्जां च धर्मं च, घोरं पापमचीकरत् // 1409 // अन्यदा लोलतावाक्यात्, पीतमद्यो गलन्मति: / धिया महाऽजं हन्मीति, जघान पशुपालकम् / // 1410 // 248

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