Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 19
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 246
________________ कथञ्चिदागताः शैले, महामोहादिशत्रवः / शिखरादप्रमत्तत्वाल्लोठ्यन्तेऽस्मान्मुनीश्वरैः / // 1272 // इतः सद्भावनायन्त्रमुक्तैर्ध्यानोरुगोलकैः / सैन्यं दन्दह्यते सर्वं महामोहादिभूभुजाम् // 1273 // विद्यतेऽत्र करग्राह्यं, साम्यकल्पलताफलम् / अधःस्थितैर्यदास्वादः, स्वप्नेऽपि हि न लभ्यते // 1274 // निवेशितमिह प्रौढं, पुरं जैनं सुखावहम् / पुण्यहीनैजनरेतद्, भवचक्रेऽतिदुर्लभम् // 1275 // कालेन भूयसा यान्ति, कृच्छ्रात् सात्त्विकमानसे / / भवचक्रे ततो यान्ति, पुण्यहीनाः पुनर्जनाः // 1276 // नत्वीक्षन्ते विवेकादि, ततो भूरिंगमागमैः / . कदाचित् ते प्रपश्यन्ति, नत्वारोहन्ति सस्पृहाः // 1277 // आरूढा अपि यान्त्यन्ये, भवचक्रे स्वशत्रवः / तत्र स्थिता अपि परे, पश्येयुः शिखरं तु न // 1278 // दृष्ट्वाऽपि नाधिरोहन्ति, तदन्ये शिथिलाशयाः / तदारूढाः पुनर्धन्या, जैनं पश्यन्ति सत्पुरम् // 1279 // इयदुर्लभसामग्रीलभ्यसुन्दरदर्शनम् / . पुरमेतत् सदानन्दं, मुक्त्यर्थं प्रस्थितैर्जनैः // 1280 // नैषां प्रयाणभङ्गाय, वासोऽपि विबुधालये / रात्रिस्वापसमः शान्तमहामोहादिविद्विषाम् // 1281 // प्रकर्षः प्राह पश्यामि, मातुलैष्वपि विक्रियाम् / महामोहादिभूपालजनितां भवचक्रवत् // 1282 // बिम्बेष्विमेऽपि मूर्च्छन्ति, यज्जिनानां लयस्थिताः / स्वाध्यायेषु च रज्यन्ति, स्निह्यन्ति समधर्मसु // 1283 // - 230

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