Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 19
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________ क्वचित् पापिजनाकीर्णं, क्वचिद् धर्मनयान्वितम् / ' चरित्रैविविधैः पूर्णमन्तरङ्गमहीभुजम् .. // 1068 // द्वितीयं चारु संतानमन्दारहरिचन्दनैः / रत्नहाटकसंघातघटितानेकपाटकम् .. // 1069 // मणिप्रभाहतध्वान्तं, नित्यालोकं विराजितम् / / . चलत्कुण्डलकेयूरमौलिहारप्रभास्वरैः // 1070 // रतिसागरनिर्मग्नैरम्लानवनदामभिः / नित्यप्रमुदितैर्देवैरप्सर परिरम्भिभिः (त्रिभिविशेषकम्) // 1071 // साताख्यं कृतवान् कर्मपरिणामोऽत्र नायकम् / तेनेदं सतताह्लादं, शान्तविघ्नविनायकम् // 1072 // ईर्ष्याशोकभयक्रोधलोभमोहमदभ्रमैः / परीतमपि मुग्धानां; भाति रम्यमिदं, पुरम् // 1073 // तेनेत्थं वर्णितं दुःखाकुलितं परमार्थतः / विवेकशिखरस्थानामिदमप्यवभासते // 1074 // तृतीयं क्षुत्पिपासाभीबन्धोद्वेगप्रपीडितैः / . जनैरनन्तैः संकीर्णं, महामोहवशीकृतैः // 1075 // चतुर्थे तु पुरे लोका वसन्ति तमसावृताः / नायकोऽत्र कृतोऽसातवेद्याख्यो मोहभूभुजा . // 1076 // तत्र लोकाः कदर्थ्यन्ते, परमाधार्मिकासुरैः / पाय्यन्ते तप्तताम्राणि, दार्यन्ते क्रकचोत्करैः // 1077 // खाद्यन्ते निजमांसानि, दह्यन्ते प्रबलाऽग्निना / भृज्ज्यन्ते तत्र तार्यन्ते, क्रूरां वैतरणी नदीम् // 1078 // शाल्मलीरभिरोह्यन्ते, विकट वज्रकण्टकैः / / कुन्ततोमरनाराचैश्छिद्यन्ते च सहस्रशः (त्रिभिविशेषकम्) | // 1079 // 20.

Page Navigation
1 ... 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274