Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 19
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ अनभीष्टमतिद्वेष्यं, यदेषा कुरुते जनम् / तदिदं वीर्यमेतस्या, जगत्त्रयभयावहम् // 1128 // परिवारः किलैतस्या दीनताऽभिभवस्त्रपा / न्यूनता चित्तलघुता, वेषविज्ञानहीनता // 1129 // नियुक्तां सुप्रसन्नेन, नाम्ना सुभगतामियम् / हन्ति तत्कोपसमयस्फुटलब्धोदयाऽङ्गिनाम् // 1130 // अनया हृतसौभाग्या, वल्लभानामवल्लभाः / शोकेन परिरभ्यन्ते, निजनिन्दापरायणाः // 1131 // प्राह प्रकर्षः सन्त्यासां, किं मातुल ! न वारकाः / लोकपालाः क्षितीशाद्या, दोर्दण्डोद्धृतभूभराः // 1132 // विमर्शः प्राह नैवासां, कोऽपीष्टे विनिवारणे / प्रभुष्वपि स्फुरत्यासां, वीर्यमुन्माथि दारुणम् प्रकर्षः प्राह तद् यत्नः किमासां विनिवारणे / / न कार्यो देहिना प्राह, विमर्शो निश्चयात् तथा // 1134 // एता ह्यवश्यभाविन्यः, क्षेतुं शक्या न केनचित् / / अशक्यार्थप्रवृत्तेश्च, फलं नान्यच्छ्रमाद् ऋते (युग्मम्) // 1135 // यतन्ते तद्विनाशाय, तथाऽपि व्यवहारतः / स्वागोमलो हि सर्वत्र, क्षालनीयः क्रियाम्भसा // 1136 // प्रवर्त्यते हठात् कर्मपरिणामेन मानवः / कार्यो हर्षविषादौ नो, तत्र निश्चयवेदिना // 1137 // व्यवहारनयज्ञोऽपि, सद्धेतौ यतते बुधः / जरादीनां विनाशे च, सद्धेतुर्धर्म एव हि // 1138 // नास्ति यत्र जराद्युत्थः, क्लेशः सा निर्वृति: पुरी / / ज्ञानश्रद्धानचारित्रमयो धर्मस्तदाप्तिकृत् // 1139 // 25

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