Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 19
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 960 // // 961 // // 962 // // 963 // // 964 // // 965 // स्रजः पर्णानि गन्धांश्च, क्रीत्वा वस्त्रयुगं तथा / गत्वोपवापि भुक्त्वा च, भोजनं तृप्तिमाप सः ततस्ताम्बूलमास्वाध, धृत्वा पुष्पस्रजं हृदि / सौरभाढ्यः स्फद्धक्त्रः, प्रस्थितो नृपलीलया / पुनः पुनः स्फुरत्कान्ति, प्रेक्षते मुकुरे मुखम् / मोदते गन्धमाघ्राय, गर्वेण नरिनति च प्रकर्षो विस्मितः प्रोचे, युवाऽयं को नु मातुल ! / व प्रस्थितः किमुद्दिश्य, किं विकारैश्च भज्यते विमर्शः प्राह गणिकाव्यसनी रमणो ह्ययम् / सामुद्रदत्तिरत्रैव, वास्तव्यः पत्तने युवा अनेनाल्पैदिनैरेव, शोषितं पापबुद्धिना / धनं समुद्रदत्तस्य, ग्रीष्मार्केण सरो यथा जातोऽयमधुनेदृक्षो, निर्धनः परकर्मकृत् / . परकर्मकरत्वेन, कतिचित् प्राप रूपकान् . नाटितो व्यसनेनाथ, कुरुते यत् तंदीक्ष्यते / अस्ति ह्यत्र पुरे ख्याता, वेश्या मदनमञ्जरी तस्याश्च कुन्दकलिका, पुत्री लावण्यवाहिनी / तस्यामासक्तचित्तेन, धनमेतेन नाशितम् / / गेहान्निस्सारितश्चायं, धनहीनस्तया रयात् / प्रस्थितोऽद्य गृहे तस्याः, किञ्चित् प्राप्य धनं पुनः अत्रान्तरे प्रकर्षेण, दृष्टः, सानुचरो नरः / सतूणीरः समाकृष्टशरः पृष्टश्च मातुल: कोऽयं माम ! निहन्त्येनं, स प्राह मकरध्वजः / चर्यया निर्गतो रात्रौ, भयानुचरसंयुतः 211 // 966 // // 967 // // 968 // // 969 // // 970 // // 971 //

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