Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 19
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 216
________________ स्फीतनीलसिचयोरुरुचीनां, कामुकं प्रति रसेन यतीनाम् / निह्नवाज्जनदृशां कुलटानां, रुच्यतामुपययौ तिमिरौघः // 912 // गच्छतेव निजकालनियोगा-दाहिता दिनकृता पुनराप्त्यै / दीप्तिरस्ततिमिरा प्रजजृम्भे, दीपकेष्वनुगृहं विधृतेषु // 913 // आबभार विधुना परिमुक्तं, नव्यसंगमरसोल्लसितेन / नाकिनेतुरथ दिग् घनसारक्षोदसोदरमभीशुसमूहम् // 914 // क्षालयन् मलिनमम्बरमुच्चै-रुच्छलज्जलकणोपमतारम् / निर्मलांशुसलिलैरुपशैलं, ध्वान्तपङ्कमनयद् व्ययमिन्दुः // 915 // संगमो विधुकरैर्निपतद्भि-र्जाह्नवीयमुनयोर्यदभूत् खे / तेन मुण्डनमभूदिह रात्रिब्राह्मणीतिमिरकेशभरस्य // 916 / / कुन्दसुन्दरलसत्करजालं, विष्टपत्रयजयाय पटिष्ठम् / चारुचक्रमिव मान्मथमेकं, खे रराज विधुमण्डलमुद्यत् // 917 // आददेऽङ्गममृतैः परिषिञ्चन्, यो विलासिषु सुधाघटलीलाम् / सोऽप्यभूद् विधुरहो विरहिण्या-श्चण्डकुण्डलितसर्पकरण्डः।। 918 // पार्वतीप्रणतशंकरचूला-निर्गलत्सुरनदीजलरम्याः / धौतविश्ववलयाः प्रसरन्तो, रेजिरे तुहिनरश्मिमयूखाः // 919 // इत्थं चन्द्रोदये जाते, जनानन्दविधायिनि / दृष्टो निजापणद्वारे, ताभ्यां कश्चिन्महेश्वरः // 920 // युतो नैकैर्वणिकपुत्रनिविष्टस्तुङ्गविष्टरे / ' मणिभिः पद्मरागाद्यैः, प्रहृष्यन्निहितैः पुरः // 921 // राजतैः काञ्चनैः स्तोमैरुद्गर्वहृदयो भृशम् / अलङ्कारैश्च वस्त्रैश्च, विचित्रश्चित्रमाप्नुवन् // 922 // प्रकर्षः प्राह लक्ष्मीवान्, मातुलायं किमीदृशः / तिस्चीनापतदृष्टिः, सरलं नेक्षते जनम् // 923 // = = = . 207

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