Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 5
________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) जाय तो बहुतसे धनी पुरुष भी महादुःखी दिखाई पड़ते है । किसीके पुत्र नहीं है इसलिए दुःखी होता है, किसी की स्त्री अच्छी नहीं है वा कलह करनेवाली है अथवा कोई धनी सदा बीमार रहता है उसके धनका उपयोग दूसरे लोग करते रहते है परन्तु उसको सिवाय मूंगकी दालके और कुछ खानेको मिलता ही नहीं है । इस प्रकार धन रहते हुए भी वे लोग मिथ्यात्वकर्मके उदय से मदा दुःखी बने रहते हैं। इसी प्रकार स्वर्ग में भी किल्बिष आदि नीच देव होने हैं वे इन्द्र की सभामें प्रवेश भी नहीं कर सकते तथा इसमें वे महादुःन्त्री बने रहते हैं । वे देव अन्य सम्माली देदोंगी विभतियों को देखकर महादुःखी हुआ करते हैं । इस प्रकार मिथ्यात्वकर्मके उदयसे ये मंसारी जीव सदाकाल दुःख भोगते रहते हैं । हे आत्मन् ! यदि तू इन दुःखोंसे बचना चाहता है तो सम्यग्दर्शन धारण कर । सम्यग्दृष्टी पुरुष नरक में पहुंचने पर आत्मजन्य सुखका अनुभव करता हुआ सदा सुखी बना रहता है । देखो जो पुरुष अत्यन्त सन्तोषी होता है वह पुरुष दरिद्री होनेपर भी उमीमें सुख मानता रहता है उसी प्रकार सम्यग्दृष्टी पुरुष सदा सुखी बना रहता है । प्रश्न:- सप्तम नरकं याति यो मोक्ष याति किं न सः । __ अर्थ:- हे भगवन् ! जो पुरुष सातवें नरकम जा सकता है वह पुरुष क्या मोक्ष में नहीं जा सकता ? उत्तरः- गाढप्रमोहाद्विषयाभिलाषा यः सप्तमं श्वभ्रमपि प्रयाति । स एव कि मोक्षगृहं न याति, ध्यानाग्निना कर्मचयं च दग्ध्वा ॥ ७ ॥ मोक्षाभिलाषी सुखदं सुपुण्यं, बीजं भवाग्नेस्त्यजतीति मत्वा । दुःखप्रदं पापतमः स किन, लोकेऽस्ति भध्यस्थ कृतियगाधा ॥ ८ ॥

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