Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 34 Dashvaikalik Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम
[भाग-३४] “दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (मूलं+नियुक्ति:+|भाष्य+वृत्ति:) अध्ययनं [१०], उद्देशक -1, मूलं [४...] / गाथा ||११-१५|| नियुक्ति : [३५८...], भाष्यं [६२...]
(४२)
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प्रत
सूत्रांक ||११
-१५||
हदुक्खसहे अ जे स भिक्खू ॥ ११॥ पडिमं पडिवजिआ मसाणे, नो भीयए भयभेरवाई दिस्स । विविहगुणतवोरए अनिच्चं, न सरीरं चाभिकंखए जे स भिक्खू ॥ १२ ॥ असई वोसट्टचत्तदेहे, अकुटे व हए लूसिए वा । पुढविसमे मुणी हविज्जा, अनिआणे अकोउहल्ले जे स भिक्खू ॥ १३ ॥ अभिभूअ कारण परीसहाई, समुद्धरे जाइपहाउ अप्पयं । विइत्तु जाईमरणं महन्भयं, तवे रए सामणिए जे स भिक्खू ॥ १४ ॥ हत्थसंजए पायसंजए, वायसंजए संजइंदिए । अज्झप्परए सुसमाहिअप्पा,
सुत्तत्थं च विआणइ जे स भिक्खू ॥ १५॥ किंच-यः खलु महात्मा सहते 'सम्यग्ग्रामकण्टकान्' ग्रामा-इन्द्रियाणि तहुःखहेतवः कण्टकास्तान , स्वरूपत एवाह-आक्रोशान महारान् तर्जनाश्चेति, तत्राकोशो यकारादिभिः प्रहाराः कशादिभिः तर्जना असूछयादिभिः, तथा 'भैरवभया' अत्यन्तरौद्रभयजनकाः शब्दाः सप्रहासा यस्मिन् स्थान इति गम्यते तत्तथा
तस्मिन् , वैतालादिकृतार्तनादाट्टहास इत्यर्थः, अनोपसर्गेषु सत्सु समसुखदुःखसहश्च-यः अचलितसामा
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दीप अनुक्रम [४९५-४९९]
Edream
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र[४] मूलसूत्रा३] दशवैकालिक मूलं एवं हरिभद्रसूरिविरचिता वृत्ति:
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