Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 21 Sooryapragyapti Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

View full book text
Previous | Next

Page 547
________________ आगम (१६) "सूर्यप्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) प्राभृत [१९], -------------------- प्राभृतप्राभृत ,-------------------- मूलं [१००] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१६] उपांगसूत्र- [१] "सूर्यप्रज्ञप्ति मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१००] गाथा: वा ३ दो सतसहस्सा सत्तद्धिं च सहस्सा णव प सता तारागणकोडीणं सोभिंसु वा ३ । पण्णरस सत सहस्सा एकासीतं सतं च ऊतालं । किंचिविसेसेणूणो लवणोदधिणो परिक्खेवो ॥१॥ चत्तारि चेव चंदा चित्तारिप सूरिया लवणतोये । पारस णक्खत्तसयं गहाण तिपणेव पावणा ॥१॥ दोघेव सतसहस्सा ससहि लखलु भवे सहस्साई । पाव व सता लवणजले तारागणकोडिकोडीणं ॥ २॥ ता लवणसमुई धातईसंडे णाम दीवे बट्टे वलयाकारसंठिते तहेव जाव णो विसमचउकबालसंठिते, धाईसंडे णं दीवे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतिय परिक्खेवेणं आहितेति वदेवा, ता चत्तारि जोधणसतसहस्साई चकवाल विक्खंभेणं ईतालीस जोपणसतसहस्साई दस य सहस्साई णव य एकटे जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं आहि-1 तेति वदेजा, धातईसंडे दीवे केवतिया चंदा पभासु वा ३ पुच्छा तहेव धातईसंडे णं दीवे वारस चंदा पभासेंसु वा ३ पारस सूरिया तवेंसु वा ३ तिषिण उत्तीसाणक्खत्तसताजोअंजोएंसु वा ३ एगं छप्पणं महग्गह-IA सहस्सं चार चरिसुवा३-'अद्वेव सतसहस्सा तिण्णि सहस्साई सत्तय सयाई । (एगससीपरिवारो) तारागणको[डिकोडीओ॥१॥सोभ सोभसुधा३-धातईसंघपरिरओईताल दसुत्तरा सतसहस्सा। णव घ सता एगट्ठा किंचि विसेसेण परिहीणा ॥१॥ चउचीसं ससिरविणो णक्वत्तसता यतिविण छत्तीसा। एगं च गहसहस्सं छप्पणं पधातइसंडे ॥२॥ अद्वेव सतसहस्सा तिणि सहस्साई सत्त य सताई। धायइसंडे दीये तारागणकोडिकोडीणं ४ ॥ ३॥ ता धायईसड णं दीवं कालोपणे णामं समुद्दे वट्टे वलयाकारसंठाणसंठिते जाव णो विसमचकवाल दीप अनुक्रम [१२९-१९२]] *OGA% SARELIEatunintentTATERIA ~547~

Loading...

Page Navigation
1 ... 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610