Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 21 Sooryapragyapti Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 599
________________ आगम (१६) "सूर्यप्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्तिः ) प्राभृत [२०], ----------------- प्राभृतप्राभृत [-], ----------------- मूलं [१०७] + गाथा:(१-१५) पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१६] उपांगसूत्र- [१] "सूर्यप्रज्ञप्ति मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: E प्रत सूत्रांक -ॐ [१०७ -१०८] ||१-१५|| |माणवए कामफासे य ।। ४ ।। धुरण पमुहे विपडे विसंधिकप्पे तहा पयल्ले य । जडियालए य अरुणे अ-11 ग्गिल काले महाकाले ॥५॥ सोस्थिय सोवत्थिय बद्धमाणगे तथा पलंघे य । णिचालोए णिमुजोए सयंपभे|| व ओभासे ॥ ६॥ सेयंकर खेमंकर आभंकर पभंकरे य योद्धधे । अरए विरए य तहा असोग तह बीतसोगे। य॥ ७॥ विमले वितत विवत्थे विसाल तह साल मुवते चेव । अणियट्टी एगजडी य होह बिजडी य बोद्धयो ॥ ८॥ कर करिए रायऽग्गल योद्धचे पुष्फ भाव केतू या अट्टासीति गहा खलु णेयवा आणुपुधीए ॥९॥(सूत्रं १०७) इति एस पाहुडत्या अभवजणहिययदुल्लहा इणमो । उकित्तिता भगवता जोतिसरायस्स पण्णत्ती ॥१॥ एस गहिताबि संता थवे गारवियमाणिपडिणीए । अबहुस्सुए पदेया तधिवरीते भवे देवा ॥२॥ सद्धा|धितिउट्टाणुकछाहकम्मबलविरियपुरिसकारहिं । जो सिक्खिओधि संतो अभायणे परिकहेकाहि ॥ ३॥ सो पवयणकुलगणसंघबाहिरो गाणविणपपरिहीणो । अरहतधेरगणहरमेरं फिर होति बोलीणो ॥ ४॥ तम्हास घिति उवाणुच्छाहकम्मपलविरियसिविखणाणं । धारेयचं णियमा ण य अधिणासु दायम् ॥ ५॥ वीरवअस्स भगवतो जरमरणकिलेसदोसरहियरस । बंदामि विणयपणतो सोनुपाए नया पाए ॥५॥ (स०८ सर्यप्रज्ञप्तिसूत्रं सम्पूर्ण ॥ ग्रन्थाग्रं २२०० दीप अनुक्रम [१९८-२१४] | अत्र विंशति प्राभृतं परिसमाप्तं ~599~

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