Book Title: Sanskrit Prakrit Hindi Evam English Shabdakosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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संस्कृत - प्राकृत-हिन्दी एवं अंग्रेजी शब्द कोश
श्लिष्टोपमा, सिलिट्ठोवमा, स्त्री० श्लिष्टापमा नामक अलंकार, जहाँ दो अर्थों की संभावना के साथ उपमा हो, a figer of speech, • यत्रास्ति द्वयर्थानां च संभावयहेव तु । उपमा सादृशं अपि, श्लिष्टोपमा च उच्यते।। (जयो० वृ० 3/77, 3/76, 3/75, 79, 8/32, 8/33, 13/58),
कर्बुरासारसम्भूतं पद्मरागगुणान्वितम् । राजहंसनिषेव्यं च रमणीयं सरो यथा । (जयो० 3/76), कर्बुर सुवर्णस्य य आमारः प्रसारस्तेन सम्भूतं सम्पन्नम् । वह मण्डप सरोवर के समान रमणीय है, क्योंकि सरोवर में तो कुबेर अर्थात् जल का आसार/समूह होता है तो मण्डप भी कर्बुर या सुवर्ण से बना हुआ है। सरोवर में पद्म/कमल होते हैं तो यह मण्डप भी पद्मराग मणि से युक्त हैं। सरोवर में राजहंस होते हैं तो यह मण्डप भी श्रेष्ठ राजाओं से सेवित है। श्लीपदं, सिलीपद, नपुं० [ श्री युक्तं वृत्ति युक्तं पदम् अस्मात्] सूजी हुई टांग एक रोग विशेष, swelled leg.
श्लील, सिलील, वि० [ श्री अस्ति अस्य + लच् ]
भाग्यशाली, समृद्ध, lucky, prosperous. श्लेषः, सिलेसो, पुं० [श्लिष् + घञ् ] an embrace, • आलिंगन मिलन, चिपकना, clinging adhering, जुड़ना, संलग्न होना, union, junction, • मिलाप, संपर्क, सम्बन्ध, संगम, contact, • श्लेषालंकार, अनेकार्थ शब्द प्रयोग, किसी भी शब्द या वाक्य में दो या दो से अधिक अर्थों की संभावना होती है । (जयो० वृ० 3/46, 3 / 30 ), figure of speech, पदैस्तैरेव भिन्नैर्वा, वाक्यं वक्त्येकमेव हि । अनेकमर्थं यत्रासौ श्लेष इत्युच्यते यथा । (वाग्भट्टालंकार, 4/127), जहाँ उन्हीं पदों से अथवा भिन्न पदों से एक ही वाक्य अनेक अर्थों को व्यक्त करता है वहाँ श्लेषं अलंकार होता है। संसदी तवर्गमण्डितेऽथा, पवर्गपरिणामपण्डिते । श्रीत्रिवर्गपरिणायके तथा तिष्ठतीष्टकृदसाव भूत्कथा ।। (जयो० 3/20, 7/81, 7/86 )
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(जयो० वृ० 16 / 16, 23/ 128, 3/4, 5/21 ) (atto 2/37)
श्लेष - गर्भोत्प्रेक्षा, सिलेसं गब्भुप्पेक्खा, स्त्री० श्लेष सहित उत्प्रेक्षा, with embrace of ut preska.
श्लेषगर्भो वक्रोक्त्यङ्कारः, सिलेस-गब्भोवक्कोतिअलंकारो, पुं० श्लेष सहित वक्रोक्ति अलंकार, with embrace of vakrokti figure. श्लेषपूर्वक उत्प्रेक्षा, सिलेसपुव्वग-उत्पेक्खा, स्त्री० श्लेष सहित उत्प्रेक्षा अलंकार, with embrace of utpreksa, इङ्गितेनो भयो : श्रेयस्करीहामुत्र पक्षयोः । दुहिता द्विहिता नामैतादृशी पुण्यपाकतः । । (जयो० वृ० 3/56) श्लेषरूपकः, सिलसरूवग, पुं० श्लेष सहित रूपक अलंकार, with embrace of rupaka, रूपामृतस्रोतस एव कुल्यामिमा-मतुल्यामनुबन्धमूल्याम्। लब्ध्वाऽक्षिमीन द्वितयी नृपस्य, सलालसा खेलति सा स्म तस्य ।। (जयो० 11/1, जयो० वृ० 22 / 19 ) श्लेषपूर्वोपमालङ्कारः, सिलेसपुव्वोवमालंकारो, पुं० श्लेषपूर्वक उपमा अलंकार, with embrace of upama figure of speech, (जयो० 5/28,7/85), राजमाप इव चारघट्टतो, भेदमाप कटकोऽपि पट्टतः । यस्ततस्तु दशरूपधारकः, सम्भवन्निह स सूपकारकः ।। (जयो० 7/85) श्लेषात्मकोत्प्रेक्षा, सिलेसप्पकोप्पेहा, स्त्री० श्लेष सहित
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उत्प्रेक्षा, with embrace of utpreksha. श्लेषमिश्रितोत्प्रेक्षा, सिलेसमिस्सिओप्पेहा, स्त्री०
अलंकार का नाम, जहाँ श्लेष सहित उत्प्रेक्षा हो, with embrace of utpreksha. श्लेषानुप्राणित-रूपकालङ्कारः, सिलेसाणुपाणिजरूवगालकार, पुं० श्लेष समन्वित रूपक अलंकार, with embrace, a figure of speech, तस्य शुद्धतरवारिसञ्चरे, शौर्यसुंदरसरोवरे तरेः । ईक्षितुं श्रियमुदस्फुरद्भुजा, शौचवर्त्मनि गुणेन नीरजा । (जयो० 7/84) श्लेषोऽनुप्रासः, सिलेसोउणुप्पासो, पुं० श्लेष सहित अनुप्रास का प्रयोग जहाँ हो, with embrace