Book Title: Sanmati Tarka Gatha 1 41 na Tatparya Vishe Vicharna
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ मई २०११ ८५ अहीं पण समजवानुं छे. सातमो भांगो त्रणे मूलभूत भांगाना संयोजनरूप छे. आ साते भांगा ओकठा थाय अटले सर्जातुं महावाक्य, परिपूर्ण बोध करावतुं होवाथी, प्रमाणवाक्य गणाय छे. उदाहरण साथे आ वात जोइओ तो– 'घडो लाल छे ?' ओम कोई पूछे अने जवाबमां फक्त हा पाडवामां आवे, तो अनाथी व्यक्तिने थतो घडामां सर्वथा रक्तत्वनो बोध अप्रामाणिक ज छे, कारण के घडो फक्त बहारथी लाल छे, अंदरथी नहीं. तेथी आम कहेवू जोइओ- घडो बहारथी लाल छे (स्याद् घटो रक्त एव, स्याद् = अपेक्षाओ, प्रस्तुत सन्दर्भमां बहारना भागे),पण अंदरथी लाल नथी (स्याद् घटोऽरक्त एव). आ ज सप्तभंगीना पहेला बे भांगा छे. पण बहारथी अने अंदरथी अकसाथे जोइओ तो घडो लाल छे पण खरो, अने नथी पण. तेथी कहेवू पडे के ते रीते घडानुं स्वरूप कहेवानुं शक्य नथी.१ (स्याद् घटोऽवक्तव्य एव) आ त्रीजा भांगा द्वारा प्रतिपादित थती अवक्तव्यता घडामां रक्तत्वना अस्तित्व-नास्तित्व उभयने आश्रित छे. आ त्रण भांगाना संयोजन द्वारा बाकीना भांगा आम सर्जाशे : स्याद् घटो रक्त एव स्याद् घटोऽरक्तश्चैव, स्याद् घटो रक्त एव स्याद् घटोऽवक्तव्यश्चैव, स्याद् घटोऽरक्त एव स्याद् घटोऽवक्तव्यश्चैव, स्याद् घटो रक्त एव स्याद् घटोऽरक्त एव स्याद् घटोऽवक्तव्यश्चैव। हवे आपणे वादमहार्णवटीकामां दर्शावायेला, आ गाथाना, बे अर्थो जोइशं. पण ओ जोतां पहेलां टीकाकारने सम्मत केटलाक शब्दार्थो समजी लेवा जरूरी छे. - (१) अर्थपर्याय - अर्थना ग्राहक संग्रह, व्यवहार अने ऋजुसूत्र ओ त्रण अर्थनयो. 'अर्थगताः पर्याया अस्तित्वनास्तित्वादयो विषया यस्य सोऽर्थपर्यायः' आवी कोइक 'अर्थपर्याय' शब्दनी व्युत्पत्ति तेओना मनमा होइ १. प्रश्न थाय के 'स्याद्- ओक साथे उभय अपेक्षाओ(-बहारथी अने अंदरथी) घटो- घडो रक्तोऽरक्तश्चैव- लाल छे पण अने लाल नथी पण अम केम न कहेवाय ? पण अनो जवाब ओ छे के आम कहेवामां 'बहारथी लाल छे अने लाल नहीं तेमज अंदरथी लाल छे अने लाल नहीं' ओम साबित थाय, जे अवास्तविक छे. आने बदले जो ओम कहेवा जइओ के 'घडो बहारथी लाल छे अने अंदरथी लाल नथी,' तो ओ चोथो भांगो थइ जाय छे. माटे ओक साथे उभयअपेक्षाओ घडानुं जे रक्त-अरक्त स्वरूप छे, तेने वर्णवq शक्य न होवाथी घडाने अवक्तव्य ज कहेवो पडे.

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