Book Title: Sanmati Tarka Gatha 1 41 na Tatparya Vishe Vicharna
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ १०४ अनुसन्धान-५५ जरूरी छे; तेथी चोक्कस समूहोमां धर्मोने गोठववा, तेमांथी अक समूहगत अक धर्मनो अने कुल बे धर्मो-जेमां ओक स्वरुप होय अने ओक पररूप-नो उल्लेख प्रश्नमां जरूरी मानवो वगेरे व्यर्थ कल्पना ज छे. उपर दर्शावेली रीते जोइओ तो वाच्यतामां पण त्रीजो भांगो घटे ज छे. जेमके घडो घटपदवाच्य त्यारे ज बने छे के ज्यारे अने 'घट' पदी ओळखवो अवुं नक्की कर्तुं होय, १ अ सिवाय नहीं, माटे ज अंग्रेजी भाषानी अपेक्षाओ घडो घटपदवाच्य नथी. तो जे अपेक्षाओ घडामां घटपदवाच्यता छे अने जे अपेक्षाओ नथी, ते बन्ने अपेक्षाओ ओकसाथे जोइओ तो आ वाच्यताने आश्रित अवक्तव्यता आववानी ज, अने तत्प्रतिपादक त्रीजो भांगो मळवानो ज. ट्रंकमां, शब्दनिरूपितवाच्यताने जो धर्म तरीके लइने विचारीओ तो अमां सप्तभंगी ज रचाय छे. माटे ओ रीते व्यंजनपर्यायमां बे ज भांगा घटाववा सम्भवित नथी. २. अज्ञानादि दूर करवा अ ज सप्तभंगीनुं प्रयोजन छे. तेनी प्ररूपणामां 'चोरस अने काळा घडानी जरूर पडवी' सेवा व्यावहारिक प्रयोजनोनी अपेक्षा ज नथी होती. वास्तवमां सप्तभंगीना प्रणयनमां आवां व्यावहारिक प्रयोजनोनी अपेक्षा राखवामां ‘सप्तभंगीनुं क्रमशः आ ज रीते निरूपण थाय, अने निरूपण साते सात भांगानुं थाय' आवा केटलाक नियमो ज नथी सचवाता. कारण के व्यवहारमां तो जेवा घडानी जरूर पडी तेवा घडा माटे पूछ्युं अने जेवो घडो हतो तेवो जवाब आपी दीधो भेटले वात पूरी थइ जाय छे. सप्तभंगीनुं खरेखर प्रयोजन जो वास्तविक बोध गणीओ तो ज आ बधी प्ररूपणा करवानी रहे छे. माटे, व्यावहारिक प्रयोजनना अभावे वाच्यतामां त्रीजा भंगनो अभाव घटाववो बिल्कुल वाजबी नथी. ३. 'घटपदवाच्योऽस्ति न वा ?' जेवा प्रश्नोने वाच्यताविषयक गणी ज केवी रीते शकाय ? कारण के ओमां घटपदवाच्य धर्मीमां अस्तित्वनी शंका छे. वाच्यताने संशयनो विषय बनावतो प्रश्न तो आम निरूपाय : 'अयं घटपदवाच्यो न वा ?' अने आ प्रश्नने अनुलक्षीने सप्तभंगी पण आम रचाय: 'स्यादयं घटपदवाच्य एव स्यादयं घटपदावाच्य एव स्यादयमवक्तव्य एव...' १. वधु साची रीते कहेवुं होय तो ओम कहेवाय के घडामां घटपदनो संकेतग्रह कर्यो होय.

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34