Book Title: Sanmati Tarka Gatha 1 41 na Tatparya Vishe Vicharna
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसन्धान-५५
पूर्ण बोध सप्तभंगीमां पर्यवसित थाय छे. अने आ साते भांगामां धर्म तरीके तो ते अर्थपर्याय मोजूद होय ज छे. माटे आ अर्थपर्यायनी प्ररूपणा आपणे सात विकल्पे करी शकीओ. आ ज वात आ गाथाना पूर्वार्धमां कहेवाई छे- 'अत्थपज्जाएअर्थपर्यायमां (-तेने लगती प्ररूपणामां) एवं- उपर दर्शावेली रीते सत्तविअप्पोसात प्रकारनो वयणपहो- वचनमार्ग होइ - रचाय छे. '
सदृशपर्यायप्रवाहरूप व्यंजनपर्याय स्वयं शब्दवाच्य समूहरूपे अक (-निर्विकल्पः) पण छे अने अनेक पर्यायोना समूहरूप होवाथी अनेक (-सविकल्प) पण छे. तेथी आपणे तेनी प्ररूपणा पण बे रीते करी शकीओ : १. व्यंजनपर्यायने तेना सामान्यस्वरूपे ज प्ररूपीओ, तेना भेदो न वर्णवीओ. आ वखते व्यंजनपर्याय - विषयक वचनमार्ग निर्विकल्प बने छे. २. व्यंजनपर्यायने तेना अन्तर्गत आवेला पर्यायात्मक विकल्पो साथे वर्णवीओ. जेमके, पुरुषपर्यायनी प्ररूपणा बाल, युवान, वृद्ध वगेरे भेदो साथे करीओ. तो ते वखते व्यंजनपर्यायविषयक वचनमार्ग सविकल्प बने छे. आ व्यवस्थाने अनुसरीने भांगा आम रचाय : ' स्यादेक एव पुरुषः स्यादनेक एव पुरुष: ' अत्रे व्यंजनपर्यायविषयक प्ररूपणामां सविकल्प प्ररूपणा के निर्विकल्प प्ररूपणा ओम बे ज विकल्पो संभवित छे. त्रीजो कोई मार्ग ज नथी. २ तेथी तेमां आपोआप चीजो भांगो रचातो नथी. ३ आ ज वात आ गाथाना उत्तरार्धमां कहेवाइ छे : 'वंजणपज्जाए - व्यंजनपर्यायमां (-तद्विषयक प्ररूपणामां), उण - वळी, सवियप्पो - विकल्पो सहित य- अने णिव्वियप्पो- विकल्पोथी रहित (वचनमार्ग छे. ) ' मतलब के व्यंजनपर्यायनी प्ररूपणा स्वतन्त्र पर्यायरूपे पण करी शकाय अथवा तेने पर्यायसमूहरूपे पण वर्णवी शकाय. अत्रे वर्णवी तेवी सविकल्पत्व - निर्विकल्पत्वनी प्ररूपणा आ पूर्वे १.३२ थी १.३५ गाथामां वर्णवाइ छे ते आ भावार्थनी वास्तविकतानो सबळ पुरावो छे. वळी, १. निर्विकल्प = निर्भेद. गाथा १.३२मां विकल्प शब्द भेद अर्थमां वपरायो छे.
२. सर्विकल्प अने निर्विकल्प उभयनी प्ररूपणा तो प्रमाणवाक्य बनी जाय के जेने भंग न कहेवाय. तेथी त्रीजो विकल्प नथी ओम जणाव्युं छे.
३. अर्थपर्यायमां जे रीते पहेला बे भांगा छे, ते रीते व्यंजनपर्यायमां करवाना ज नथी. माटे अर्थपर्यायनी सप्तभंगीगत त्रीजो अवक्तव्यनो भांगो, व्यंजनपर्यायमां थाय के न थाय ते विचारवानी जरूर नथी.

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