Book Title: Sanmati Tarka Gatha 1 41 na Tatparya Vishe Vicharna
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ १०८ अनुसन्धान-५५ लगभग २० थी ४५ वर्ष सुधीनी विविध अवस्थाओनो समूह ज यौवन छे. आ अवस्थाओ वास्तवमां परस्पर भिन्न छे, छतां पण महदंशे समानता धरावती होवाथी अने अेक व्यक्तिनी वयःपरिणामनी सन्ततिमां समाविष्ट थती होवाथी, तेओनो समूह रचाय छे. आ समूहने आपणे स्वतन्त्र ओक अवस्था तरीके कल्पी 'यौवन' अq नाम आपीओ छीओ. आम यौवन व्यंजनपर्याय छे. ___आवा पर्यायो 'व्यंजनपर्याय' केम कहेवाय ते 'यौवन' पर्यायना आधारे ज समजीओ. आ पर्याय जेटली अवस्थाओना समूहरूप छे, ओ सघळी अवस्थाओमां वर्ततुं सादृश्य आ अवस्थाओनो समूह रचवामां भले निमित्त बनतुं होय, पण ओ तमाम अवस्थाओने ओक दोरे परोवनार- ओमने सांकळनार तो आ तमाम अवस्थाओमां थतो यौवन-शब्दनो व्यवहार ज छे. मतलब के आवा समान पर्यायोना जूथनो ओक स्वतन्त्र पर्याय तरीके बोध-व्यवहार थाय, तेमां शब्द ज मुख्य भाग भजवे छे. माटे आवा व्यंजन- शब्द पर आश्रित पर्यायो व्यंजनपर्याय कहेवाय छे. ढूंकमां, अनन्तपर्यायोनी परम्परामां जेटलो सदृशपरिणामप्रवाह ओक शब्द के समानार्थी शब्दोनो वाच्य बनी व्यवहार्य थाय छे, तेटलो परिणामप्रवाह ज व्यंजनपर्याय कहेवाय छे. आपणे जेने पर्याय तरीके ओळखीओ छीओ ते पुरुषत्व, घटत्व व. सामान्यतः व्यंजनपर्यायो ज होय छे. शास्त्रोमां 'अर्थक्रियाकारक पर्याय ते व्यंजनपर्याय, त्रैकालिक पर्याय ते व्यंजनपर्याय, सदृश पर्याय ते व्यंजनपर्याय' आवी जे व्यंजनपर्यायनी व्याख्याओ मळे छे, ते उपरनो ज भाव दर्शावे छे. परन्तु उपाध्यायजी भगवन्ते व्यंजनपर्यायनी ओळखाण ‘घटकुम्भादिशब्दवाच्यता'५ तरीके आपी छे ते सम्बन्धे शुं समजवू ते प्रश्न छे. कारण के शब्दनिरूपितवाच्यता अने सदृशपरिणामप्रवाह बे बहु जुदी वस्तु छे, तो बन्नेने व्यंजनपर्याय समजवा ? १. ओक व्यंजनपर्यायनी अन्तर्गत नाना-नाना घणा व्यंजनपर्यायो समायेला होय तेवू पण बने. जेमके मनुष्यत्वनी अन्तर्गत बालत्व, युवत्व, वृद्धत्व व. बालत्वनी अन्तर्गत स्तनन्धयत्व, उपनयनसंस्कारयोग्यत्व व. २. प्रवृत्तिनिवृत्तिनिबन्धनार्थक्रियाकारित्वोपलक्षितो व्यञ्जनपर्यायः - जैनतर्कभाषा पृ. २२ । ३. जे जेहनो त्रिकालस्पर्शी पर्याय ते तेहनो व्यंजनपर्याय - द्रव्य.रा.स्त.- १४.१ ४. येऽपि सदृशपर्यायास्तेऽपि सद्रव्यपृथिव्यादिवचनप्रतिपाद्या व्यञ्जनपर्यायाः - अनेकान्तव्यवस्था ५. व्यंजनपर्याय जे घटकुम्भादिशब्दवाच्यता - द्रव्य.रा.स्त.- ४.१३

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34