Book Title: Sanmati Tarka Gatha 1 41 na Tatparya Vishe Vicharna
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ मई २०११ १०७ छे ते, वास्तविक पर्याय छे. आ पर्यायो ओक क्षणमां ज वर्तनारा होय छे अने अतिसूक्ष्म होय छे. तेथी छद्मस्थ जीवो माटे ते प्रत्यक्षज्ञान के व्यवहारना विषय बनता नथी.' आ पर्यायोने शास्त्रीय परिभाषा मुजब 'अर्थपर्याय' कहेवामां आवे छे. जे पर्यायो अर्थभूत- वास्तविक छे तेवा पर्यायो ते अर्थपर्याय अथवा अर्थवस्तु पर आधारित पर्यायो ते अर्थपर्याय -आवो भाव अत्रे संभवी शके. अल्पकालीन पर्याय ते अर्थपर्याय के भूत-भविष्यना संस्पर्शथी रहित पर्याय ते अर्थपर्याय के ऋजुसूत्रनयना विषयभूत पर्याय ते अर्थपर्याय - आवी अर्थपर्यायनी व्याख्याओ उपरनो ज भाव दर्शावे छे. आ उपरान्त, व्यंजनपर्याय के जेनी ओळखाण आगळ करावाशे, तेवा ओक व्यंजनपर्याय अन्तर्गत संभवता व्यंजनपर्यायोने पण अर्थपर्याय कहेवाय छे.५ ज रीते कोई पण व्यंजनपर्यायने आपणे अर्थनिष्ठ पर्याय तरीके जोइओ तो अमां पण अर्थपर्याय शब्दनो व्यपदेश थाय छे. आ अनन्त अर्थपर्यायोनी परम्परामां जे पर्यायो परस्पर अत्यधिक समानता धरावता होय अने अक द्रव्यना कोइ ओक ज परिणाम (जेमके आत्माना गतिपरिणाम, स्थितिपरिणाम व.) के ओक ज गुणनी (जेमके आत्माना ज्ञान, दर्शन, चारित्र वगेरे) परिणतिधारामां समाविष्ट थता होय; ते पर्यायोनो समूह ओक स्वतन्त्रपर्यायरूपे व्यक्त थाय छे तेमज ते रूपे छद्मस्थजीवना प्रत्यक्षनो विषय अने शब्दथी व्यवहार्य पण बने छे. आवा पर्यायसमूहात्मक पर्यायो 'व्यंजनपर्याय' गणाय छे. आपणे ओक उदाहरण जोइओ. यौवन ओ पुरुषद्रव्यनो पर्याय छे.आ यौवन अटले शुं ? बीजुं कशुं नहीं, ओक व्यक्तिनी १. 'ते क्षणमां वर्ततुं रूप' अवां वचनो द्वारा आ अर्थपर्यायोनो पण व्यवहार थइ शके छे, पण मुख्यतः आपणे जेओनो पर्याय तरीके व्यवहार करीओ छीओ ते आ अर्थपर्यायो नथी होता अटले अहीं अर्थपर्यायो व्यवहारनो विषय नथी बनता ओम लख्युं छे. २. सूक्ष्मवर्तमानकालवर्ती अर्थपर्याय, जिम घटनइं तत्तत्क्षणवर्ती पर्याय-द्रव्य.रा.स्त.-१४.१ ३. भूतभविष्यतत्त्वसंस्पर्शरहितं वर्तमानकालावच्छिन्नं वस्तुस्वरूपं चाऽर्थपर्यायः - जैनतर्कभाषा पृ. २२ । ४. ऋजुसूत्रादेशइं क्षणपरिणत जे अभ्यन्तर पर्याय ते शुद्ध अर्थपर्याय - द्रव्य.रा.स्त.-१४.५ ५. जे जेहथी अल्पकालवर्ती पर्याय, ते तेहथी अल्पत्वविवक्षाइं अशुद्ध अर्थपर्याय कहवा. - द्रव्य.रा.स्त.-१४.५ ६. वास्तवमां पुरुष ओ आत्मद्रव्यनो व्यंजनपर्याय छे, छतां पण तेमां द्रव्यत्वनो उपचार करीने तेने द्रव्य कहेवामां आवे छे. जुओ पृ.८४ -टि.१.कोई पणव्यंजनपर्याय द्रव्य तरीकेउपचरित थइ शके छे.

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34