Book Title: Sanmati Tarka Gatha 1 41 na Tatparya Vishe Vicharna Author(s): Trailokyamandanvijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 9
________________ मई २०११ ९१ शब्दोथी वाच्य छे, ज्यारे समभिरूढ अने अवम्भूतना मते फक्त घट-शब्दथी ज वाच्य छे. माटे साम्प्रतमां घडानो व्यवहार सविकल्प छे, ज्यारे बीजा बे नयो माटे कोई विकल्प सम्भवित नहीं होवाथी घडानो व्यवहार निर्विकल्प छे.आने अनुसरीने पहेला बे भांगा आम रचाशे : 'स्याद् घटो घटवाचकयावच्छब्दवाच्योऽस्त्येव, स्याद् घटो घटवाचकयावच्छब्दवाच्यो नाऽस्त्येव । वाच्यताने अनुलक्षीने टीकाकारना मते त्रीजो भांगो आम सर्जाशे : साम्प्रतनयमते पुंल्लिंग 'दाराः' नपुंसकलिंग 'कलत्रम्' अने स्त्रीलिंग ‘पत्नी' शब्दथी उपस्थित थती व्यक्तिओ जुदी-जुदी छे. हवे आ विभिन्न व्यक्तिओ, के जे वास्तवमां तो एक ज छे, ते व्यक्तिओनो वाचक ओक शब्द कयो ? ओम पूछवामां आवे; तो साम्प्रतनय, भिन्नलिंगक शब्दोथी सूचवाती व्यक्तिओ कदी पण अक शब्दथी न सूचवाय तेवू स्वीकारतो होवाथी, अना मते तो तेवो शब्द संभवित ज नथी बनतो. अने तेने लीधे भिन्नलिंगक शब्दोथी वाच्य ओक व्यक्ति तेना माटे शब्दातीत थइ जवाथी (अथवा वधु साचं कही तो संभवती ज न होवाथी) अवक्तव्यभांगो रचाशे. आज रीते समभिरूढना मते भिन्नसंज्ञक व्यक्तिओनो वाचक ओक शब्द न होवाथी अने अवम्भूतना मते भिन्नक्रिया धरावती व्यक्तिओने उपस्थित करनार ओक शब्द न होवाथी ओ नयोना मते पण ते वास्तविक रीते अेक व्यक्तिने विशे अवक्तव्य भांगो रचाय छे. आ त्रण मूलभांगाना संयोजनने लीधे सर्जाता अन्य ४ भांगा ते ते नयोना संयोजनने आभारी छे ते स्वयं समजी शकाय तेम छे. उपर दर्शावेली शब्दनयोने आश्रित सप्तभंगी अर्थनिष्ठ अने शब्दनिरूपित ओवी वाच्यताने अनुलक्षीने छे, परन्तु शब्दनयने आश्रित भंगविचारणा वखते खरेखर तो शब्दनिष्ठ वाचकताने ज ध्यानमां लेवी जोइओ तेम, अर्थनय अने शब्दनयनी मूळभूत विभावनाने जोतां स्पष्ट समजाय छे. कारण के अर्थ (-द्रव्य के पर्याय)ने विषय बनावनारो वक्तानो अभिप्राय ज अर्थनयनो विषय छे. आ अभिप्राय अर्थने ज प्राधान्य आपे छे, कारण के ते स्वयं अर्थथी १. घडो साम्प्रतनयनी अपेक्षाओ घटवाचक घट, कुम्भ वगेरे तमाम शब्दोथी वाच्य छे ज, अवम्भूत अने समभिरूढनी अपेक्षाओ नथी ज - आवो आ भांगाओनो भावार्थ छे.Page Navigation
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