Book Title: Sanmati Tarka Gatha 1 41 na Tatparya Vishe Vicharna
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसन्धान-५५
परन्तु, उपा. श्रीयशोविजयजीओ टीकाकारना शब्दोनुं अर्थघटन कर्यु छे के 'अवक्तव्यनो प्रतिपादक शब्द नथी मळतो माटे त्रीजो भांगो नथी संभवतो' अने आवा अर्थघटनने परिणाम अनेकान्तव्यवस्थामां उद्धृत प्रस्तुत गाथाना विवरणमां से प्रश्न उठाव्यो छे के "शब्दथी भावविषयक ज शाब्दबोध थाय, अभावविषयक नहीं -आवो कोई नियम तो छे नहीं. तो पछी 'अवक्तव्य' शब्दथी वक्तव्यताना अभावने विषय बनावनारो शाब्दबोध केम न थाय ? अने जो ओ थइ शकतो होय तो तेनो प्रतिपादक त्रीजो भांगो मानवामां शं वांधो?". आम व्यंजनपर्यायमां अवक्तव्यभंगना अभाव, टीकाकारे आपेलुं कारण वाजबी नथी ते दर्शावी तेनुं नवं कारण अq सूचव्युं छे के "अर्थनयाश्रित विचारणा करतां शब्दनयाश्रित विचारणामां आवतुं अवक्तव्य, मूळभूत रीते अक ज होवा छतां, शाब्दिक रीते जुदुं पडे छे. अने आ भिन्न अवक्तव्य, पहेला बे भांगानी वक्तव्यतामां ज पर्यवसित थाय छे. अने तेथी ज व्यंजनपर्यायमा स्वतन्त्र वीजा भांगानुं कथन करवानुं रहेतुं नथी." उपाध्यायजी भगवन्ते करेली आ समग्र चर्चा वास्तविकताने बदले नव्यन्यायनी जटिल परिभाषा अने तर्क पर आधारित होवाथी तेमज विस्तृत विवेचननी अपेक्षा राखती होवाथी घणी ज रसप्रद होवा छतां, अत्रे ओने दर्शाववानुं शक्य नथी.१
ढूंकमां, आ गाथाना उत्तरार्धना बे अर्थ छ : १. शब्दनिरूपित अर्थनिष्ठ वाच्यताने अनुलक्षीने- वंजणपज्जाए- शब्दनयाश्रित
विचारणामां उण- वळी सवियप्पो- विकल्पोवाळो य- अने निव्वियप्पो
विकल्पो वगरनो (वचनमार्ग छे, अने अने अनुसरीने सप्तभंगी छे.) २. शब्दनिष्ठ वाचकताने अनुलक्षीने- वंजणपज्जाए- शब्दनयाश्रित विचारणामां
(तो) सवियप्पो- सामान्यनो प्रतिपादक य- अने निव्वियप्पो- विशेषनो प्रतिपादक (अम बे) उण- ज (वचनमार्ग छे, अने अने लीधे बे ज भांगा छे.)
उपर आपणे वादमहार्णवटीकामां दर्शावेलो आ गाथानो भावार्थ विस्तृत रीते जोयो. आ भावार्थ विषयनिरूपणनी रीते चोक्कस साचो छे, पण मूळग्रन्थकार श्रीसिद्धसेनसूरिजीनो आ गाथाना उपन्यास पाछळ आवो ज आशय हशे ओम १. मूळ चर्चा माटे जुओ पृ. ११५

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