Book Title: Sanmati Tarka Gatha 1 41 na Tatparya Vishe Vicharna
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ ८४ अनुसन्धान-५५ सात वाक्यो' ओवो थाय छे. भाव ओ छे के कोई पण धर्म (-पर्याय), धर्मी (-द्रव्य, आत्मा जेवां मूळभूत द्रव्य के घडा जेवां आदिष्ट द्रव्य)मां चोक्कस देश-कालादिनी अपेक्षाओ ज अस्तित्व धरावतो होय छे, ते सिवायनी अपेक्षाओ नहीं. हवे जो आपणे ओ अपेक्षा देखाड्या वगर ज, ते धर्मना धर्मीगत अस्तित्वनं प्रतिपादन करीओ, तो ओ प्रतिपादन अपूर्ण के विपरीत बोध जन्मावतुं होवाथी अमान्य ज गणाय. तेथी आपणे वास्तविक बोध कराववा माटे, जे अपेक्षाओ ओ धर्म धर्मीमां छे अने जे अपेक्षाओ नथी, ते बंने जणाववा ज रह्या. धर्मना आ आपेक्षिक अस्तित्व-नास्तित्वनुं प्रतिपादन अ ज सप्तभंगीना अनुक्रमे प्रथम बे- पहेलो अने बीजो भांगा छे. आ पहेला बे भांगानो बोध थाय अटले तरत प्रश्न उपस्थित थाय के- धर्म जे अपेक्षाओ धर्मीमां छे अने जे अपेक्षाओ नथी, ओ बन्ने अपेक्षाओगें ओक साथे ग्रहण करीओ तो त्यारे धर्म विशे शुं समजवू ? आ प्रश्नना उत्तरमां अवक्तव्य अम ज कहेवू पडे. कारण के, बन्ने अपेक्षाओ धर्मनुं जे अस्तित्वनास्तित्व उभयनां संमीलनरूप ओक विशिष्ट स्वरूप सर्जाय छे, तेने आपणे बुद्धिथी समजी तो शकीओ, पण शब्दथी तेने वर्णववानुं शक्य नथी ज, तेथी तेने शब्दातीत- अवक्तव्य ज कहेवू पडे. आ अवक्तव्यनो प्रतिपादक त्रीजो भांगो छे.२ आ त्रण भांगामांथी बे-बेना संमिश्रणथी चोथाथी छठ्ठा सुधीना बीजा त्रण भांगा सर्जाय छे. आ भांगा पहेला त्रण भांगाना संयोगात्मक होवा छतां ओमनाथी कथंचिद् भिन्न पण छे. गोळ अने दहीं साथे खाईओ तो ओ बन्नेना पोतपोताना स्वाद उपरान्त जेम ओक विलक्षण स्वाद अनुभवाय छे, तेम ज १. घडो वास्तवमा पुद्गलास्तिकायनो पर्याय छे, छतां अनो पण द्रव्य तरीके व्यवहार ___थाय छे, तेथी ते आदिष्टद्रव्य कहेवाय छे. २. सप्तभंगीमां त्रीजो भांगो 'स्यादस्त्येव स्यान्नाऽस्त्येव च' ओम पहेला बे भांगाना संयोजनरूप होय, अने चोथो भांगो अवक्तव्यनो होय -ओवी पण ओक परम्परा छे. पण सन्मतितर्ककार, तत्त्वार्थटीकाकार श्रीसिद्धसेनगणि व. अवक्तव्यने ज त्रीजा भांगाथी प्रतिपाद्य गणता होवाथी, अहीं बधे 'स्यादवक्तव्य एव'ने ज त्रीजो भांगो गणाव्यो छे. आ बे परम्परानी भिन्नता सकलादेश-विकलादेशनी भिन्न भिन्न विभावनाने आभारी छे, ते समजवा माटे जुओ सप्तभंगीप्रभा- पृ. ६४-७५

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