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संक्षिप्त जैन इतिहास। जैन राजा था। उसके राज्यमें जैनधर्मका खूब विस्तार हुआ था।'x
कुणिककी एक मूर्ति भी मिली है और विद्वानों का अनुमान है कि उसकी एक बांह टूटी थी। यही कारण है कि वह 'कुणिक कहलाता था (जविओसो० भा० १ पृष्ठ ८४ ) कुणिकके राज्यकालमे सबसे मुख्य घटना भगवान महावीरजीक निर्वाण लामकी घटित हुई थी। इसी समय अर्थात् १४५ ई० पूर्वमें अवन्तीम पालक नामक राजा सिहासनपर आसीन हुमा था । म० बुद्धका स्वर्गवास भी लगभग इसी समय हुमा था। (जविमोसो० भाग १५ष्ठ ११५)
कुणिक अजातशत्रुके पश्चात मगषके राज्य सिंहासनपर उसका वर्शक और पुत्र दर्शक अथवा लोकपाल अधिकारी हुआ था।
उदयन। किन्तु इसके विषयमें बहुत कम परिचय मिलता है। 'स्वप्नवासूदत्ता' नामक नाटकसे यह वत्सराज उदयन और उज्जैनीपति प्रद्योतनके समकालीन प्रगट होते हैं । प्रद्योतन्ने इनकी कन्याका पाणिग्रहण अपने पुत्रसे करना चाहा था'। दर्शकके बाद ई० पू० सन् ६०३में अजातशत्रुका पोता उदय मथवा उदयन् मगषका राजा हुमा था। उसके विषयमें कहा जाता है कि उसने पाटलिपुत्र मथवा कुसुमपुर नामक नगर बसाया था। इस नगरमें उसने एक सुंदर जैनमंदिर भी बनवाया था, क्योंकि उदयन भी अपने पितामहकी भांति भैनधर्मानुयायी था। कहते हैं कि जैनधर्मक
१४-कैहिद० पृ. १६१ अजातशत्रुने अपने शीलवत नामक भाईको भी बौद्धधर्मविमुख बनानेके प्रयत्न किये थे । ( साम्स. २६९) २- अहिह, पृ.३७ । ३-महिह पृ० १८१४-हिलि जै० पृ.४३॥