Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 24
________________ ३४] संक्षिप्त जैन इतिहास . कारण ही उसका नामकरण 'विशाला' हुमा था। चीनी यात्री ह्यन्तमांग वैशालीको २० मीलकी लम्बाई-चौड़ाईमें बसा बता गया था । उपने उसके तीन कोटों और भागों का भी उल्लेख किया है। वह सारे वृजि देशको ५००० ली (करीब १६०० मील) की परिधि फैला बतलाता है और कहता है कि यह देश बड़ा सरसन था। माम, केले आदि मेदोंके वृक्षोंसे भरपूर था। मनुष्य ईमानदार, शुभ कार्योंके प्रेमी, विद्याके पारिखी और विश्वासमें कमी कट्टर और कभी उदार थे। वर्तमानके मुजफ्फरपुर जिलेका बसाद ग्राम ही प्राचीन वैशाली है। उपरान्त के नैनग्रथोंमें विशाला अथवा वैशालीको सिंधु देशम THE बनपाण्ड जिससे भगवानका वैशाली के नागरिक होना प्रकट है। अभयदेवने भगवतीसूत्रको टीकाम 'विशाला' को महावीर जननी लिखा है। दिगम्बर मम्प्रदापके अन्योंमें यद्यपि ऐसा कोई प्रक्ट उल्लेख नहीं है, जिससे भग वानका सम्बन्ध वैशालीसे प्रष्ट होसके, परंतु उनमें जिन स्थानोद जस कुण्डग्राम, कुन्नाम, वनपण्ड आदिके नाम आए हैं. वे मव वैशालीके निकट ही मिलने है। वनपण्ड श्वेताम्बरोंका 'इपलाश उज्जान अपा 'नायपण्डपन नजान' या नायपण्ड' है। कुन्नामसे भाव अपने कुछ प्रामके होसक्ते है अथवा कोलागके होंगे, जिसमें नायवंशी क्षत्री भाषिक थे और जिसके पास ही वनपद उद्यान था, जहा भगवान महावीरन दीक्षा ग्रहण की यो। भत. दिगम्बर सम्प्रदायके उहखोंसे भगवान जन्मस्थान कुल्हयाम वैशाली निकट प्रमाणित होता है और चूंकि राजा सिद्धार्थ ( भगवान महावीरके पिता) शालीके गजधमें शामित थे, जसे कि हम प्रगट कोगे, तब वैशालीको उनका जन्मस्थान काना अत्युक्ति नहीं रखता। कुण्ठप्रामवशालीका एक भाग अधवा सग्निवेश ही था। १-क्ष्त्री 8० ० ४२ व ५४.

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