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संक्षिप्त जैन इतिहास। 'देवदुण्य वस्त्र' से क्या भाव है, यह श्वेताम्बर शास्त्रोमें नहीं बतलाया गया है। वह कहते है कि देवदृष्य वस्त्र पहिने हुये भी भगवान नग्न दिखते थे । इसका साफ अर्थ यही है कि वे नग्न थे । एक निष्पक्ष व्यक्ति उनके कथनसे इसके अतिरिक्त और कोई मतलब निकाल ही नहीं सका है। । फलतः श्वेताम्बरीय शास्त्रों में भी भगवानका नग्न दिगम्बर मुनि होना प्रगट है। अचेलक अथवा नग्न दशाको उनके 'आचारांग सूत्र में सर्वोत्कृष्ट अवस्था वतलाई । अचेलासे भाव यथानात नग्न स्वरूपो मतिरिक यहांपर और कुछ नहीं होसक्ते यह बात बौद्ध शास्त्रोंके कथनसे स्पष्ट है।
बौद्ध शास्त्रों में नैन मुनियों अथवा निग्रन्थ अमणोंको सर्वत्र नग्न साधु लिखा है और यह साधु केवल भगवान महावीरके तीर्थके ही नहीं है, प्रत्युत उनसे पहले भगवान पार्श्वनाथनीके तीर्थके भी है। अतएव भगवान पार्श्वनाथ एवं अन्य तीर्थकरोंका पूर्ण नग्न दशाको साधु अवस्थामें धारण करना प्रमाणित है। श्वेताम्बरीय आचारांग सुत्रमें भी शायद इसी अपेक्षा लिखा है कि 'तीर्थकरोने भी इस नग्न वेशको धारण किया था। इससे प्रत्यक्ष प्रगट है कि भगवान महावीरजीके अतिरिक्त अवशेष तीर्थङ्करोंने
१-कसू. स्टीवेन्धन, पृ० ८५ फुटनोट । २-Js, Ph. I. pp 55-56. ३-दीनि० पाटिकमुक्त, वीर वर्ष ४० ३५३ । ४-ममबु० पृ. ६०-६१ और २४९-२५५, जैसे दिव्यावदान पृ० १८५, जातकमाला (S. B. B. Vol. L) पृ० १४५, महावग्ण ८,१५, ३,१, ३८, १६, डायोलॉग्स ऑफ दी बुद्ध भा० ३ पृ० १४ इत्यादि । ५-ममबु० पृ० २३६-२४०। ६-J.S.L pp. 57-58.