Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 46
________________ १२२] संक्षिप्त जैन इतिहास। वानके संघर्म गण मेदका पता चलता है। वीर संघमें कुल ग्यारह गणधर थे जिनमें प्रमुख इन्द्रमूति गौतम थे। श्वेतांबर शास्त्रों के अनुसार यद्यपि गणधर ग्यारह थे; परन्तु गण कुल नौ थे। यह नौ वृन्द अथवा गण इस प्रकार बताये गये है: (१) प्रथम मुख्य गणधर इन्द्रमृति गौतम, गौतम गोत्रके ये और उनके गणमें ६०० श्रमण थे। (२) दुसरे गणधर मग्निमृति भी गौतम गोत्रके थे। इनके गणमें भी ५०० मुनि थे। (३) तीसरे गणधर वायुभूति, इन्द्रभूति और अग्निमृतिक माई थे और गौतम गोत्रके थे। इनके आधीन गणमें भी ५०० मुनि थे। (8) आर्यव्यक्त चौथे गणधर भारद्वाज गोत्रके थे। इनके गणमें भी ५०० श्रमण थे। (१) अग्नि वैश्यायन गोत्रके पांचवें गणधर सुधर्माचार्य ये, जिनके माधीन १०० श्रमण थे। (६) मण्डिपुत्र अथवा मण्डितपुत्र वशिष्ट गोत्रके थे और २५० श्रमणोंको धर्म शिक्षा देते थे। (७) मौर्यपुत्र काश्यप गोत्री मी २५० मुनियों के गणधर थे। (८) मकंपित गौतम गोत्री और हरितायन गोत्रके अचल ब्रत दोनों ही सायर तीनसौ श्रमणों को धर्मज्ञान मर्पण करते थे। (९) मैत्रेय और प्रभास कौंडिन्य गोत्रके थे। दोनोंक संयुक्त गणमें ३०० मुनि थे। -ठामाम० पृ० ५६ व कर. Js. 1265. -

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