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भगवान महावीरका निर्वाणकाल । [ १६५
लिखा है; बल्कि विक्रमके जन्मसे ४७० वर्ष पहले महावीरका : मोक्षगमन बताया गया है । शायद प्रो० सा० को यह भ्रम, उपरान्तके कतिपय जैन लेखकोंके अनुरूप, 'त्रिलोकसार' की ८५०वीं गाथाकी निम्न टीकासे होगया है; जिसमें शक राजाको 'विक्रमाङ्क' कहा है। " श्री वीरनाथनिवृते सकाशात पंचोत्तरपट्शतवर्षाणि पंचमासयुतेन गत्वा पश्चात् विक्रमाङ्कशकरानो जायते । " यहांपर विक्रमाक शक राजाका विशेषण है। वह विक्रमादित्य राजाका खास नामसूचक नहीं है । इस कारण त्रिलोकसारके मतानुसार विक्रमसे ६०५ वर्ष ५ मास पहले वीर निर्वाण नहीं माना जासक्ता और वह शकाब्दसे भी इतने पहले हुआ नही स्वीकार किया जासक्ता; यह पहले ही लिखा जाचुका है। श्वेताम्बरोंके ग्रन्थ 'विचारश्रेणि' की विक्रमसे ४७० वर्ष पूर्व वीर निर्वाण हुआ प्रगट करनेवाली गाथाओंका समर्थन उससे प्राचीनग्रंथ ' त्रिलोकप्रज्ञप्ति ' से होता ही हैं और उधर बौद्ध सं० ई० पूर्व ५४३ से प्रारम्भ हुमा खारवेल के शिलालेखसे प्रमाणित है। इसलिये वह ई० पू०४७७ में नहीं माना जासक्ता । तथापि उसके साथ वीर निर्वाण संवत् ई० पू० ४६८ से मानना भी बाधित है; क्योंकि यह बात बौद्धशास्त्रोंसे स्पष्ट है कि म० बुद्धके जीवनकालमें ही म० महावीरका निर्वाण होगया था। उक्त प्रो० सा० इस असम्बद्धताको स्वयं स्वीकार करते है । मि० काशीप्रसाद जायसवालने प्रो० सा०के इस मलका निरसन अच्छी तरह कर दिया है। अतएव इस मतको मान्यता देने में भी हम असमर्थ हैं !
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१ - जविओोसो ०, मा० १ ० ९९-१०५ । २- मज्झिम० २१२४३ व दीनि० भा० ३ पृ० १ । ३-ईऐ० भा० ४९ पृ० ४३०००
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