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२६८] संक्षिप्त जैन इतिहास । और टन्ही स्नुमार समती बढ़ती रूपमें संसारी नीति निविष मेद ही हुये हैं।'
(३) जीवन्दका व्यवहार प्रथम शिलालेख हुआ है। जैनधर्म में 'नीच' मान तत्वोंने प्रयम तत्व माना गया है।'
(१) श्रमण रद हनीय व पन्य शिलालेखोम मिलता है। मन मानोर मन धर्म कमशः श्रमण और श्रमणधर्म नागसे परिचित है।
(९) माण अनारम्भ गन तृतीय शिलालेख है। नाम यह पद पनिरोष रूपमें "पाणरम्मरूपमे मिलता है।
(६) भूत शब्द चतुर्थ शिशारेखमें प्रयुक्त हुआ है । भेन छालोंमें नीव माय इस दिशा भी ध्यवहार हुमा मिलता है। १-पचर पाना मनाचिया पनि यसमा ।
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