Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 75
________________ मौर्य साम्राज्य। [२२१ होना सिद्ध नहीं है । जैन लेखक तो स्पष्ट रीतिसे चन्द्रगुप्तको क्षत्रिय कहते हैं। हेमचन्द्राचायने 'मयूरपोषक' प्रामके नेताकी पुत्रीको चन्द्रगुप्तकी माता लिखा है। किंतु इससे भाव 'मोर पालनेवाले' के लगाना अन्याय है। प्रत्युत इस उल्लेखसे पुराणों के उपरोक उल्लेखोंका स्पष्टीकरण हुआ दृष्टि पड़ता है। संभवतः नंद राजाकी एक रानी मयूरपोषक देशके नेताकी पुत्री थी और उसीसे चन्द्रगुप्तका जन्म हुआ था। जब शूद्रानात महापद्मने नंद राज्यपर आधिपत्य जमा लिया तो चन्द्रगुप्त अपनी ननसालमें जाकर रहने लगा हो तो असंगत ही क्या है ? वहींपर चाणक्यकी उससे मेट हुई होगी। जैन शास्त्रों में एक मौर्याख्य देशका अस्तित्व महावीरस्वामीसे पहलेका मिलता है । वहाँके एक क्षत्रिय पुत्र-मौर्यपुत्र भगवानके १-जैसिभा० भा० १ कि० ४ पृ० १९; भाइ.० ६२ व राइ० भाग १ पृ. ६.। २-'मयूरपोषकप्रामे तस्मिश्च चणिनन्दन. । प्राविशत्कणभिक्षार्थ परिव्राजकवेषभृत् ॥ २३ ॥ मयूरपोषकमहत्तरस्य दुहितुस्तदा । अमृदापनसत्त्वायाश्चन्द्रपानाय दोहद. ॥ २३१-८॥" इत्यादि । श्री हेमचन्द्रके इस कथनसे चन्द्रगुप्तको 'मोरोंको पालनेवालेकी कन्याका पुत्र' लिखना ठीक नहीं है; जब कि वह प्रामका नाम मयूर पोषक लिख रहे है । मि० बरोदिया (हिलिजै० पृ. ४४) और उनके अनुसार मि. हैवेल (हिआइ० पृ० ६६) ने 'मयूरपोषक' का शब्दार्थ ही प्रगट किया है। ३-डॉ. विमलाचरण लॉ. नन्दराजाका विवाह विप्पलिवनके मोरिय (मौर्य) क्षत्रियों की राजकुमारीसे हुमा समझते हैं। देखो क्षत्रीलेन्स० पृ० २०५१

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