Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 77
________________ मौर्य साम्राज्य । [२२३ थी। फलतः जिससमय चंद्रगुप्त युवावस्थामें पदार्पण कर रहे थे, उससमय उनका समागम चाणक्यसे हुमा, जो नंदराना द्वारा अपमानित होकर उससे अपना बदला चुकानेकी दृढ़ प्रतिज्ञा कर चुका था। चाणक्य के साथ रहकर चंद्रगुप्त शस्त्र-शास्त्र में पूर्ण दक्ष होगया और वह देश-विदेशोंमें भटकता फिरा था, इससे उसका अनुभव भी खूब वढ़ा था।जो हो, इससे यह प्रस्ट है कि चन्द्रगुप्ता प्रारंभीक जीवन बड़ा ही शोचनीय तथा विपत्तिपूर्ण था। जिससमय चद्रगुप्त मगधक्के राज्य सिंहासनपर मारूढ़ हुये राज-तिलक और उस समय वह पच्चीस वर्षके एक युवक थे। राज्यवृद्धि । उनकी इस युवावस्था वीरोचित और भारत हितका भनुपम झार्य यह था कि उन्होंने अपने देशको विदेशी यूनानियोंकी पराधीनतासे छुड़ा दिया। सचमुच चन्द्रगुप्त के ऐसे ही देशहित सम्बन्धी कार्य उसे भारतके राजनैतिक रंगमंचपर एक प्रतिष्ठित महावीर और संप्तारके सम्राटोंकी प्रथम श्रेणीका सम्राट प्रगट करते हैं । 'योग्यता, व्यवस्था, वीरता और सैन्य संचालनमें चन्द्रगुप्त न केवल अपने समय में अद्वितीय था, वरन् संसारके इतिहाप्समें बहुत थोड़े ऐसे शासक हुये हैं, जिनको उसके बरावर कहा नासका है। मगधके राज्य प्रात करनेके साथ ही नंद रानाकी विराट सेना उप्तके आधीन हुई थी। चन्द्रगुप्तने उस विपुलवाहिनीकी वृद्धि की थी। उसकी सेना में तीस हजार घुडसवार, नौ हनार हाथी, छै लाख पैदल और बहुसंख्यक रथ थे। ऐसी दुर्गय . १-बौखोके 'अर्थ कथाकोष' में भी यह उल्लेख है । जैसि मा० पूर्व पृ० २१ । लामाइ०, मा० पृ. १४२ । ३-अहिं० पृ. २४ । -

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