Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
१९८] संक्षिप्त जैन इतिहास । ही मुल हुई है। उसको देखने के लिये यहाँपर उन प्रमाणोंको उपस्थित करना उचित है, जिनके आधारसे यह गणना हुई है:(१) सत्तरि चदुसदजुत्तो तिणकाला विकमो हवइ जग्मी। अठवरस सोडसवासेहि भम्मिए देखे ॥ १८ ॥
नदिसंघ पटावली (जसिमा०, कि०४ पृ० ७५) (२) सत्चरि चदुसदजुत्तो तिणकाले विको हवइ जम्मा।
अठवरस वाललीला, साडसबासेहि भम्मये देखो। रसपण वीसा रज्जो कुणति मिच्छोपदेश संजुत्तो। चालीस वरस जिनवर धम्मे पालेय सुरपयं लहियं ॥
॥विक्रम प्रबंध ॥ (३) सरस्वती गच्छकी पट्टावलीकी भूमिका स्पष्टरूपसे वीर निर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रमका जन्म होना लिखा है; यथा-- "बहुरि श्री वीरस्वामीकू मुक्ति गये पोछे च्यारसौ सत्तर ४७० वर्ष गये पीछे श्रीमन्महाराज विक्रम राजाका जन्म भया।" (४) रणि कालगो अरिहा तित्थंकरी महावीरी।
तं रणि अति वई अभिसित्तो पालयो रायो । सट्टी पालग रन्ने पण पण्णसं यतु होई नंदाणं । अट्ठसयं मुरियाणं तीसचिम पुस्समिसस्स । चलमित्त-मानुमित्तो सट्ठी वरिसाणि चत्तं नरवाहणे । तह गहमिल्ल रन्तो तेरसवरिसा सगस्स च ॥
-तीर्थोवार प्रकीर्ण । (१) वसुनदि श्रावकाचाग्में विक्रम शकसे ४८८ वर्ष पूर्व महावीर निर्वाण होना लिखा है। (देखो जैनमित्र, वर्ष ५ अंक १११० ११-१२)।

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92