Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 62
________________ १८०] संक्षिप्त जैन इतिहास। (६) नन्द कशा ( ई० पूर्व ४५९-१२६) शिशुनागवंशके अंतिम दो रानाओं-नन्दवर्द्धन और महान न्दिका उल्लेख पहिले किया जाचुका है किन्तु इनके नव-नन्द। नामके साथ 'नन्द' शब्द होनेके कारण, यह नन्द. वंशके राजा अनुमान किये जाते है। नंदवंशमें कुल नौ राजा अनुमान किये जाते है। किन्तु मि० जायसवाल 'नव-नन्द' का अर्थ 'नवीन-नन्द' करते हैं। इस प्रकार नन्दवर्द्धन और महानंदि तथा महादेवनन्द व नन्द चतुर्थ प्राचीन नंदराजा ठहरते है । क्षेमेन्द्रके 'पूर्वनन्दाः ' उल्लेखसे भी इनका प्राचीन नन्द होना सिद्ध है। नवीन नंद राजाओं में कुल दोका पता चलता है। इस प्रकार कुल छै राना नंदवंशमें हुये प्रगट होते है । कवि चन्दबरदाई (१२ वी श० ई.) ने 'नव' का अर्थ नौ किया था, किन्तु वह भ्रम मात्र है। हिन्दुपुराणों के अनुसार नंदवंशने १०० वर्ष राज्य किया था। किन्तु जैनग्रन्थों में उनका राज्यकाल १५५ वर्ष लिखा मिलता है। १-जविओसो, भा० १ पृ ८७-सिकन्दर महानको वृपल नन्द सिंहासन पर मिला था (३२६ ई० पू०) और चन्द्रगुप्तने दिसम्बर ई. पू. ३२६ में अतिम नन्दको परास्त किया था। इस कारण मि० जायसवाल एक महीनेमें माठ राजाओंका होना उचित नहीं समझते । २-अहिह पृ. ४५ । -जविओसो, भा० १ पृ. ८९...व भाप्रारा० भा० २ पृ. ४३ | ४-हरि० भूमिका पृ० १२ व त्रिलोक्प्रज्ञप्ति गाथा ९६-(पालकरज्ज सहि इगिसय पणण्ण विजयवसंमत्रा।) जैन ग्रंथोंमें इस वशका नाम 'विजयवश' लिखा है।

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