Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 47
________________ श्री वीर-संघ और अन्य राजा। [१२३ 'इसप्रकार महावीरजीके ग्यारह गणधर, नौ वृन्द और ४२०० वीरसंघके मनि- श्रमण मुख्य थे। इसके सिवाय और बहुतसे योंकी संख्या । श्रमण और आनिकाए थीं, जिनकी संख्या क्रमसे चौदहहजार और छत्तीसहजार थी। श्रावकोंकी संख्या १५००० थीं और श्राविकाओं की संख्या ३१८००० थी।" दिगम्बर आम्नायके ग्रंथो में भगवान के इन्द्रभूति, भग्निमृति वायुभूति, शुचिदत्त, सुधर्म, मांडव्य, मौर्यपुत्र, भकपन, अचल, मेदार्य और प्रभास, ये ग्यारह गणधर बताये गए हैं। ये समस्त ही सात प्रकारकी ऋद्धियोसे सपन्न और द्वादशाके वेत्ता थे। गौतम आदि पांच गणघरोंके मिलकर सब शिष्य दशहनार छैतो पचास और प्रत्येकके दोहजार एकसौ तीस २ थे। छठे और सातवें गणघरोंके मिलकर सब शिष्य माठसौ पचास और प्रत्येकके चारसौ पच्चीस २ थे। शेष चार गणघरोंमसे प्रत्येकके छैसो पच्चीस २ और सब मिलकर ढाईहनार थे। सब मिलकर चौदहहनार थे। गणों के अतिरिक्त आत्मोन्नतिके लिहानसे यह गणना इसप्रकार थी, अर्थात ९९०० साधारण मुनिः ३०० अंगपूर्वधारी मुनिः १३०० भवधिज्ञानधारी मुनि, ९०० ऋद्धिविक्रिया युक्त श्रमण, ५०० चार ज्ञानके धारी; ७०० केवलज्ञानी; ९०० अनुत्तरवादी । इस तरह भी सब मिलकर १४००० मुनि थे। ० ४० १-मम० पृ० १८१ । २-हरि० पृ० २. (सर्ग ३ ४६) ३-हरि० पृ. २० ।

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