Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 40
________________ ज्ञानिक क्षत्री और भगवान महावीर। [८१ दोनों मत प्रवर्तकोंका विभिन्न मात्राका ज्ञान भी था। महावीरनी पूर्ण सर्वज्ञ और त्रिकालदर्शी थे, यह बात स्वयं बौद्ध शास्त्र प्रगट करते हैं; जैसे कि ऊपर व्यक्त किया गया है। किन्तु म० बुद्धको यद्यपि बौद्ध शास्त्र सर्वज्ञ बतलाते हैं। परन्तु यह बात वह स्पष्ट स्वीकार करते हैं कि म० बुद्धकी सर्वज्ञता हरसमय उनके निकट नहीं रहती थी। वह जब जिप्त बातको जानना चाहते थे, उस बातको ध्यानसे जान लेते थे। अत: म० बुद्धका ज्ञान पूर्ण सर्वज्ञता न होकर एक प्रकारका अवविज्ञान प्रगट होता है। ज्ञानके इम तारमम्यको समझकर ही शायद म बुद्धने कभी भी जैन तीर्थकरसे मिलने का प्रयाप्त नहीं गौतम बुद्धका ज्ञान किया था और न उनने महावीरजीकी वैसी तीव्र आलोचना की है, जैसे कि उन्होंने उस समयके अन्य मतप्रवर्तकोंकी की थी। किन्तु इस कथनसे यहां हमारा भाव म० बुद्ध के गौरवपूर्ण व्यक्तित्वकी अवज्ञा करनेका नहीं है। हमारा उद्देश्य मात्र भगवान महावीरके दिव्य प्रभावको प्रगट करनेका है; जिता विशिष्ट रूप स्वयं बौद्ध शास्त्र प्रगट करते हैं । बौडोके कथनसे यह भी प्रगट होता है कि उस समयके विदेशी लोगो-यवनो (Inde-Greeks) में भी भगवान महावीरनीकी मान्यता विशेष होगई थी । सर्वज्ञ प्रमुका महत्व किसको अछूता छोड़ सकता है ? भगवान के केवली होते ही जनता उनके अनुपम महान व्यकित्वपर एकदम मोहित होगई प्रगट होती है। इस दिव्य घटनाके १-मिलिन्दपन्ह (SBE.) मा० ३५ पृ० १५४ । २-ममवु० पृ. ७२-७५ । ३-हिग्ली० पृ० ७८ । -

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