Book Title: Samyaktva Kaumudi
Author(s): Jinharsh Gani, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ प्रथमः सम्यक्त्वकौमुदी ॥ अहम् ॥ ॥ पू. आ. श्री विजयमेघमूरिभ्यो नमः ॥ श्रीमन्जिनहर्षगणिविरचिता ॥ सम्यक्त्वकौमुदी॥ ॥ प्रथमः प्रस्तावः ॥ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ॐ नमः शाश्वतानन्दविज्ञानोदयशालिने । श्रीयुगादिजिनेन्द्राय स्वामिने परमात्मने ॥१॥ श्रीवीरः सर्व विद्याद्धिा वैरिजयश्रियम् । त्रिजगजनरक्षायां जागत्येकोऽपि योऽद्भुतम् ॥ २॥ सर्वज्ञवृषभाः सन्तु शिवाय वृषभादयः । राजहंसी यते नित्यं शिवश्रीयत्पदाम्बुजे ॥३॥ जयन्तु गुरवस्तेऽङ्गिकरुणावरुणालया। कल्पवल्लीव यद्भक्तिर्व्यनक्ति निखिलाः श्रियः॥४॥ जिनो देवो गुरुः साधुधमस्तद्दर्शितस्तथा। रत्नत्रयमिदं जीयाजन्तुजातशिवावहम् ॥५॥ रत्नद्वीपोपमं प्राप्य नृभवं भववारिधौ । धर्मचिन्तामणियः सुधियाऽभीष्टसिद्धये ॥ ६॥ यतः

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 220