Book Title: Samyaktva Kaumudi
Author(s): Jinharsh Gani, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ सम्यक्त्वकौमुदी वच्चेना प्रसंगो रष्टांतो द्वारा अनेक बोध वर्णव्या छे अने भव्यजीवो रसपूर्वक वांची सांभली शके अने सम्यक्त्वने पामी शके सुलभबोधी बनी शके तेवा रहस्योथी आ ग्रन्थ भरेलो छे. ॥४॥ आ ग्रन्थनु संपादन सं. १९७३मां पू. प्र- श्री कांतिविजयजी गणिवरना शिष्य पू. मुनिश्री चतुरविजयजी महाराजे करेल हतु. XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX विजयप्रकरण, हेतुखंडन प्रकरण वि. रच्या छे तेमने पण पं. सोमविजय गणि, पं. कमलविजय गणि, पं. शुभवर्धन गणि विगेरे शिष्यो हता. ___ आ. जयचंद्रसू. म. ए १५०६मा, आ. सोमदेवसू. ए १५७३मां सम्यक्त्वकौमुदी नामना ग्रन्थो रच्या छे तथा आ. गुणाकरसू. ए १५०४मां सम्यक्त्वकौमुदी कथा रची छे एम जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहासमा छै. परन्तु आ सम्यक्तकौमुदीनी तेमां नोंध लेवाइ नथी. आ ग्रन्थमा राजगृही नगरीना श्रेणिक राजाना राज्यमां अर्हदास श्रावक हता ते सम्यग्दृष्टि हता तेमने सम्यक्त्व प्राप्त केवी रीते थयूते वर्णन छे तथा तेमनी आठ स्त्रीओमां मित्रधी, चन्द्रश्री, विष्णुश्री, नागश्री, पद्मलता, स्वर्णलता. विद्युल्लता ए सात सम्यक्त्व केवी रीते पामी ते प्रसंगो वर्णव्या छे. ज्यारे आठमी कुन्दलता जे आ बघा दृष्टांतो आदिने मिथ्यात्वना योगे सद्दहती नथी एम सम्यक्त्व अने मिथ्यात्वनु द्वन्द्व चाले छे. लि. सं. २०४० आसो सुद २ पू. सिद्धिसू. म. स्वर्ग दिन तपगच्छ जैन उपाश्रय ४५, दिग्विजय प्लोट जामनगर (सौराष्ट्र) जिनेन्द्र सूरि ॥४॥

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 220