Book Title: Samyaktva Kaumudi Author(s): Jinharsh Gani, Vijayjinendrasuri Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala View full book textPage 3
________________ सम्यक्त्व :: सम्पादकीय : कौमुदी ॥३॥ EXXXXXXXXXXXXXXXXX*) श्री अरिहंत परमात्मानुशासन ए सत्यदर्शन शासन | गणि पण जणाव्यु छे. तेओ महो. श्री जिनमंडनगणिना छे. जगत्ना स्वरूपनु वास्तविक ज्ञान तेमां छे. अने ते ज्ञान | विद्या शिष्य हता. पामी ज्ञेयहेय अने उपादेयना विभागने समजी सद्दही शक्य | तेमणे रयणसेहरनरवइकहा, सम्यक्त्वकौमुदी (सं. आचरण करवानु छे. १४८७), वस्तुपाल चरित्र महाकाव्य (चितोडमां सं. १४६७) श्री सम्यक्त्वकौमुदी ए श्री अरिहंतना शासननो वास्त- विंशतिस्थानक प्रकरण (वीरमगाममांसं.१५०२), विचाराविक श्रद्धाने प्रगट करनारु शास्त्र छे. सम्यक्त्व पामवाना मृतसंग्रह, आरामशोभा कथा ( ग्रं. ४५१) सुरपण्णत्ति हेतुओ अने दृष्टांतो तेमा छे. सम्यक्त्व पामनारनी श्रद्धा अने टीप्पण, चन्दपण्णत्ति टिप्पण, वरतारा, अनर्धरा धववृसि, स्थिरतानी सौरभ एमां छे. प्रसंगोने पामीने आ ग्रन्थमा अष्टभाषामय श्री सीमंधर स्तवन, गुरु नाम गुप्त विमलाचल सम्यक्त्व, मिथ्यात्व, देशविरति, सर्वविरति, वीशस्थानक, मंडन श्री प्रादिनाथ स्तोत्र, कुमारपाल रास, जबूस्वामी रास अग्यार प्रतिमा, आठदृष्टि, जिनप्रासाद, जिनप्रतिमा विगेरे ग्रन्थो रच्या छे. श्री रत्नशेखरसू. म. विरचित श्राद्ध| विधान आदिनु स्वरूप वर्णव्युछे. विधि कौमुदी तेमणे शोधो छे. आ ग्रन्थना कर्ता पू. आ. श्री सोमसुदरसू. पट्टधर पू. तेमणे गिरनार तीर्थ उपर सं. १५११मां कोट बहार आ. श्री मुनिसुन्दरसू. पट्टधर पू. आ. श्री जयचन्द्रसू. ना | चौमुख जिनालयमा प्रतिष्ठा करी छे. तेमने आ-उदयनंदीसूरि शिष्य श्री जिनहर्ष गणिवर छे. तेमनु बीजु नाम जिनहंस ] गुरु भाइ हप्ता तथा पं. साधुविजय गणि शिष्य हता जेमणे XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX:Page Navigation
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