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भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला
३. अात्म स्वरूपकी यथार्थ समझ सुलभ है।
अपना आत्मस्वरूप समझना सुगम है किन्तु अनादिसे स्वरूप के अनभ्यासके कारण कठिन मालुम होता है। यदि कोई यथार्थ रुचिपूर्वक समझना चाहे तो वह सरल है।
___चाहे जितना चतुर कारगर हो तथापि वह दो घड़ी में मकान तैयार नहीं कर सकता किन्तु यदि आत्मस्वरूपकी पहिचान करना चाहे तो वह दो घड़ी में भी हो सकती है। आठ वर्षका बालक एक मनका वोझा नहीं उठा सकता किन्तु यथार्थ समझके द्वारा आत्माकी प्रतीति करके केवलज्ञानको प्राप्त कर सकता है । आत्मा परद्रव्यमें कोई परिवर्तन नहीं कर सकता किन्तु स्वद्रव्यमें पुरुषार्थके द्वारा समस्त अज्ञानका नाश करके सम्यग्ज्ञानको प्रगट करके केवलज्ञान प्राप्त कर सकता है । स्व में परिवर्तन करनेके लिये आत्मा संपूर्ण स्वतंत्र है किन्तु परमें कुछ भी करनेके लिये आत्मामें किचित् मात्र सामर्थ्य नहीं है। आत्मामें इतना अपार स्वाधीन पुरुषार्थ विद्यमान है कि यदि वह उल्टा चले तो दो घड़ीमें सातवें नरक जा सक्ता है और यदि सीधा चले तो दो घड़ीमें केवलज्ञान प्राप्त करके सिद्ध हो सकता है।
परमागम श्री समयसारजीमें कहा है कि-'यदि यह आत्मा अपने शुद्ध आत्मस्वरूपको पुद्गल द्रव्यले भिन्न दो घड़ीके लिये अनुभव को ( उसमें लीन होजाय ) परिषहोंके आने पर भी न डिगे तो घातिया कर्मोका नाश करके केवलज्ञानको प्राप्त करके मोक्षको प्राप्त हो जाय ।
आत्मानुभवकी ऐसी महिमा है तो मिथ्यात्वका नाश करके सम्यग्दर्शन की प्राप्तिका होना सुलभ ही है, इसलिये श्री परम गुरुओंने यही उपदेश प्रधानतासे दिया है।'
श्री समयसारप्रवचनोंमें आत्माकी पहिचान करनेके लिये वारंवार प्रेरणा की गई है कि